वे रात १२ बजे तक पूजा करते हैं
विनय बिहारी सिंह
एक दुर्गा मां के अनन्य भक्त हैं। वे अपने बारे में कोई भी प्रचार नहीं चाहते, इसलिए उनका नाम यहां नहीं दे रहा हूं। उनकी एक बात मुग्धकारी है। वे शाम को अपने आफिस से आते हैं। हल्का- फुल्का कुछ खाते हैं। कभी दो बिस्कुट या कभी दो पेठे। इसके बाद अगरबत्ती, धूप, इत्यादि से मां दुर्गा की पूजा करते हैं। और फिर बैठ जाते हैं पाठ करने। पाठ खत्म करने के बाद वे ध्यान में बैठ जाते हैं। उनके एक मित्र ने कहा- दुर्गापूजा तो बीत गई। आप अब पाठ किए जा रहे हैं? उन्होंने जवाब दिया- दुर्गापूजा कभी खत्म नहीं होती। इस सृष्टि के पहले भी मां थीं और बाद में भी रहेंगी। उनकी पूजा में जो आनंद है, वह संसार के किसी काम में नहीं मिलेगा। मैं तो मां की गोद में बैठ जाता हूं और आनंद मनाता हूं। यही मेरा ध्यान है। अगर आप उनसे पूछेंगे- मां भी आपसे कुछ कहती हैं या आप एकतरफा ही बोलते हैं या प्रार्थना करते हैं? वे जवाब देंगे- मां से एकतरफा संबंध हो ही नहीं सकता। मां बच्चे के बिना नहीं रह सकती और बच्चा मां के बिना। तो एकतरफा संबंध कहां हुआ। आपके भीतर यह गहरा और पक्का विश्वास होना चाहिए कि मां ही इस सृष्टि की स्वामिनी हैं। तब शुरू होता है- साधना का पथ। अगर गहरा और पक्का विश्वास नहीं है तो फिर अगर मां आपका उत्तर भी देंगी तो आपको सुनाई नहीं देगा, महसूस नहीं होगा।
वे आधी रात तक ध्यान करते हैं। फिर हल्का सा भोजन लेकर धार्मिक पुस्तकें पढ़ते हैं। तब सोते हैं। सोते- सोते रात के एक बज जाते हैं। अगले दिन सुबह छह बजे उठ जाते हैं और फिर वही कार्यक्रम। लेकिन सुबह उनका पूजा- पाठ और ध्यान इत्यादि नौ बजे ही खत्म हो जाता है क्योंकि उन्हें अपने आफिस भी जाना होता है। उन्हें देख कर लगता है कि वे दिन- रात मां दुर्गा की भक्ति में डूबे रहते हैं। रह- रह कर मां, मां कहते रहते हैं। मानो वे हमेशा मां की ही गोद में रहते हों।
1 comment:
dbhut vyaktitva se parichit karaya sir aapane. Pakka vishwas naheen hai to maan jawab dengee to bhee suna mahsoos naheen hogaa.
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