Friday, October 22, 2010

लक्ष्मी पूजा

विनय बिहारी सिंह


आज कोलकाता में चारो तरफ लक्ष्मी पूजा का माहौल है। लक्ष्मी भगवान विष्णु की पत्नी हैं। भगवान क्षीर सागर में शेषनाग की शैय्या पर लेटे हुए हैं। उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म हैं। नाभि से कमल की नाल निकली है और नाल के सिरे पर कमल का फूल जिसमें ब्रह्मा जी बैठे हुए हैं। भगवान विष्णु के पांवों को मां लक्ष्मी दबा रही है। विष्णु भगवान के इस मनोहारी चित्र से हम सभी परिचित हैं। इसके अलावा- प्रार्थना करते समय हम सब कहते हैं- त्वमेव माता च पिता त्वमेव। त्वमेव बंधुश्चसखा त्वमेव। त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव। त्वमेव सर्वं ममदेव देव।।
इस श्लोक में द्रविणं त्वमेव। यानी हम भगवान से कह रहे हैं कि प्रभु, आप ही धन हैं। विष्णु भगवान के भक्तों का कहना है कि विष्णु जी की पूजा करने से ही लक्ष्मी की पूजा हो गई। उनका कहना है कि विष्णु के अवतारों- राम या कृष्ण की भी पूजा से यही फल मिलता है। आप भगवान कृष्ण की पूजा करेंगे तो वह लक्ष्मी जी को भी चला जाएगा। आखिरकार वे भगवान विष्णु की अर्धांगिनी हैं।
आज इसी लक्ष्मी जी की पूजा है। जिनके बिना मनुष्य खुद को लाचार पाता है। लक्मी जी ताकत हैं। शक्ति हैं। धन की देवी अगर प्रसन्न न हों तो क्या हालत होती है, यह बताने की आवश्यकता नहीं है। पाठ करते समय मां काली से कहा जाता है- यशम् देहि, धनं देहि।। इत्यादि। पश्चिम बंगाल में मां काली अनेक लोगों के लिए सर्वोच्च शक्ति हैं। अनंत ब्रह्मांडों की स्वामिनी हैं। क्योंकि वे भगवान शिव की पत्नी हैं। मां लक्ष्मी हम सभी को धन धान्य से पूर्ण करें।

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