Saturday, October 9, 2010

कर्मों का फल

विनय बिहारी सिंह

ऋषियों और धर्मशास्त्रों ने कहा है- हमें कर्मों का फल भोगना पड़ता है। आपने पिछले जन्म में जो किया है और जो कामनाएं की हैं, उन्हीं के कारण आपने यह जन्म लिया है। यानी हम जो बोते हैं वही काटते हैं। इसीलिए कहा गया है कि दूसरों के बारे में बुरा न सोचें, क्योंकि आपके साथ भी वही हो जाएगा। जब आप दूसरों के बारे में अच्छा सोचते हैं तो आपके साथ भी अच्छा होता है। मान लीजिए आपके मन में एक अच्छा सा मनचाहा घर बनाने की इच्छा है, तो आपका अगला जन्म इसीलिए होगा कि आप एक अच्छा सा घर बनाएं, चाहे दिन रात पसीना बहा कर या दिन रात धन प्राप्ति के बारे में सोच कर। यह संसार हमारा स्कूल है। परमहंस योगानंद जी ने कहा है- यह संसार हमारा घर नहीं है। यहां तो हम अपने सुधार के लिए आए हैं। अगर संसार के ही हो कर रह गए तो फिर दुबारा यहां जन्म लेना पड़ेगा और कष्ट झेलने पड़ेंगे। हमारा असली घर ईश्वर में है। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है- अर्जुन, दुखों के समुद्र रूपी संसार से बाहर निकलो। सचमुच इस संसार का होकर रहने से दुखों का होकर रहने जैसा है। इस संसार का कुछ भी हमारे साथ नहीं जाएगा। जाएंगी तो सिर्फ कामनाएं और वासनाएं। इसलिए भगवान ने गीता में कहा है- यह माया बड़ी दुस्तर है। लेकिन मेरे अनन्य भक्तों को यह छू नहीं सकती। मेरे अनन्य भक्तों को फिर इस संसार में नहीं लौटना पड़ता। वे तो दिव्य आनंद के लोक में सुख पूर्वक रहते हैं।

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