भगवान श्रीकृष्ण ने मालिन
का कूबड़ ठीक किया
विनय बिहारी सिंह
कंस का वध करने जब भगवान कृष्ण मथुरा गए तो देखा कि वहां एक कूबड़ी स्त्री (जिसकी पीठ पर एक बड़ा से गोल आकार बना हुआ है और जिसके कारण वह झुक कर चलती थी) बहुत सुंदर माला बना रही है। भगवान उसके सामने रुक गए। वह स्त्री इतने सुंदर मनमोहन बालक को देख कर मुग्ध हो गई। भगवान ने पूछा- क्या बना रही हो सुंदर स्त्री? कूबड़ी स्त्री बोली- राजा कंस के लिए माला बना रही हूं। लेकिन सारे लोगों की तरह तुम भी मुझे चिढ़ा रहे हो? मैं इतनी बदसूरत स्त्री, मुझे सुंदर कह रहे हो? भगवान ने कहा- यह माला मुझे दो, यह मेरे लिए है। उन्होंने वह माला खुद पहन ली और कूबड़ी स्त्री की पीठ को छू दिया। क्षण भर में उसका कूबड़ ठीक हो गया और उसका रूप रंग सुंदर हो गया। मथुरा के लोग तो उसे पहचान ही नहीं पा रहे थे। इतनी सुंदर, लावण्य से भरपूर स्त्री। एक भक्त ने भगवान से पूछा- प्रभु, इस कूबड़ी स्त्री पर आपने कृपा क्यों की? भगवान हंसे और कहा- वह दिन- रात मुझे याद करती रहती थी। मन ही मन मुझसे बात करती रहती थी। लेकिन जब मैं उसके सामने गया तो पहचान नहीं पाई। मैंने उसे सुंदर कहा तो मन ही मन बोली- हे भगवान, एक और व्यक्ति ने मुझे चिढ़ाया। जो भक्त दिन- रात मेरे बारे में ही सोचता रहता है, मन ही मन मेरा नाम लेता रहता है और मेरी छवि देख कर विभोर हो जाता है, उसका कल्याण तो निश्चित ही है। कूबड़ी स्त्री, मेरी अत्यंत भक्त थी। उसने मुझे नहीं पहचाना तो भी क्या फर्क पड़ता है। उसने तो अपने हृदय में मुझे जगह दी है। नतीजा यह है कि मेरे दिल में भी वही है। वह भीतर से अत्यंत सुंदर है, इसलिए बाहर से भी सुंदर है। गीता में भी भगवान कृष्ण ने कहा है- मेरे भक्त का कभी विनाश नहीं होता। वह परमपद पाता है।
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