Monday, October 18, 2010

बुरी प्रृवृत्ति पर अच्छाई की विजय

विनय बिहारी सिंह


आप सभी को दुर्गापूजा (विजयादशमी) की शुभकामनाएं। ईश्वर आप सबकी मनोकामना पूरी करें। जैसा कि आप जानते हैं- दुर्गापूजा, दिव्य शक्ति की पूजा है। इसी शक्ति का नाम दुर्गा, काली, पार्वती या राधा है। यह पर्व अच्छाई पर बुराई की विजय का प्रतीक है। मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। महिषासुर आसुरी वृत्ति, पाशविकता और तम का प्रतीक है। मां दुर्गा ने उसी का वध कर दिया। जब भी हम मां दुर्गा की पूजा करते हैं, यह विनती करते हैं कि- मां हमारे भीतर की बुरी प्रवृत्तियों को खत्म कर दो। मेरी नकारात्मक प्रवृत्तियों का नाश हो। हमें शक्ति दो मां कि हम विवेक, भक्ति और विजय के मार्ग पर चलें। हमारे धर्म ग्रंथों में महाशक्ति को जीवनदायिनी कहा गया है। सच भी है।
बिना शक्ति के कौन व्यक्ति आनंद से रह सकेगा? लेकिन यह शक्ति अर्धांगिनी के रूप में ही है। जैसे शिव- पार्वती, राधा-कृष्ण, राम- सीता। पार्वती को ही काली और दुर्गा के रूप में पूजा जाता है। पश्चिम बंगाल में मातृ शक्ति की पूजा को अत्यधिक महत्व दिया जाता है। यानी मां काली को ही सबकुछ मानने वाले कई लोग आपको मिल जाएंगे। वे यह मानते हैं कि मां ही उनकी देख भाल कर रही हैं। वही उन्हें भोजन और वस्त्र दे रही हैं। इसीलिए आज जब दुर्गा प्रतिमा का विसर्जन हो रहा था तो अनेक महिलाएं रो रही थीं। मां दुर्गा के विसर्जन के दुख में। वे जानती हैं कि मां दुर्गा सर्वत्र हैं। सर्वव्यापी हैं। लेकिन उस मूर्ति से मोह हो गया है। मानों मां दुर्गा सशरीर ही उपस्थित हो गई हों अपने भक्तों के लिए। मूर्ति को हुगली नदी को डुबाया जा रहा था और कुछ महिलाएं रो रही थीं- फिर आना मां..कहते हुए। भगवान के प्रेम में जिनके आंसू निकलते हैं वे अत्यंत सौभाग्यशाली हैं। ऐसे लोगों की भगवान २४ घंटे रक्षा करते हैं।

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