त्याग किसका करें
विनय बिहारी सिंह
गीता में अर्जुन ने भगवान कृष्ण से पूछा है कि त्याग क्या है? संन्यास क्या है? इसके उत्तर में भगवान ने कहा है- कर्तव्यों का त्याग उचित नहीं है। यग्य और दान का त्याग नहीं करना चाहिए। त्याग करना चाहिए अपनी बुरी प्रवृत्तियों का। यानी भय का त्याग, लोभ का त्याग, हिंसा का त्याग और अनावश्यक कामनाओं का त्याग। ऋषियों ने कहा है- यदि मनुष्य तामस और राजस गुणों को छोड़ सिर्फ सत्व गुण का सहारा ले तो उसे ईश्वर प्राप्ति हो जाएगी। ऐसे अनेक लोग हैं जो पूजा- पाठ और ध्यान का समय किसी व्यर्थ के काम में खर्च कर देते हैं। ध्यान या पूजा- पाठ का समय हो गया है, लेकिन यदि टेलीविजन पर कोई सीरियल आ रहा है तो वे ध्यान- पूजा छोड़ देंगे। कोई अच्छी चीज खाने को आ गई तो जल्दी से पूजा या ध्यान करके उठ जाते हैं। कई लोगों को ध्यान करना उबाऊ लगता है और वे यह समय गप हांकने में लगाते हैं। तो इन सब आदतों का त्याग करना चाहिए। कहा ही गया है कि किसी भी चीज की अति बुरी है। ठीक है कि आप दिन- रात पूजा- पाठ या ध्यान में नहीं बिता सकते। लेकिन जो समय आपने तय किया हुआ है, उसका पालन करना चाहिए। यदि आठ से नौ बजे रात तक आपने ध्यान या पूजा- पाठ करना तय किया है तो उसका ईमानदारी से पालन करना चाहिए। जिस समय चाहे जो करने का अभ्यास सुस्ती और लापरवाही का द्योतक है। आखिर आदमी को सिस्टमेटिक होना ही चाहिए। समयानुसार जब आप काम करने लगेंगे तो उसी में आपको आनंद आएगा। समय का पालन करना कई लोगों के लिए बोझ बन जाता है क्योंकि समय के अनुसार अपनी दिनचर्या ढालना उन्हें खराब लगता है। और ग्रहण क्या करें। ग्रहण करें प्रेम, ईश्वर का आशीर्वाद और धार्मिक ग्रंथ, अच्छा पौष्टक और स्वास्थ्यकर भोजन, स्वच्छ पानी, शुभेच्छाएं और शुभकामनाएं। आप मौन रह कर प्रेम की तरंगें जाने-अनजाने लोगों को भेज सकते हैं। क्योंकि जो वाइब्रेशन आप देते हैं, वही पाते हैं। जो बोएंगे, वही काटेंगे। मन में बस प्रेम भरिए और उसे संसार में छोडिए। यानी कल्पना कीजिए कि आपका प्रेम संसार के सभी लोगों के पास जा रहा है। बस वह प्रेम आपके पास लौट कर और ज्यादा मधुरता के साथ आएगा।
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