Tuesday, December 28, 2010

आखिरी सांस कब?



विनय बिहारी सिंह


एक साधु से युवक ने पूछा- अच्छा बाबा, आप कोई एक उदाहरण दीजिए जिससे समझ में आए कि भगवान हैं। साधु ने कहा- बेटा, तुम्हें याद है कि तुमने कब सांस लेना शुरू किया? युवक बोला- नहीं। साधु ने पूछा- तुम्हें मालूम है कि तुम्हारी सांस कब तक चलेगी? युवक ने कहा- नहीं बाबा। यह मैं कैसे बता सकता हूं। यह तो निश्चित नहीं है। मेरी सांस अभी भी बंद हो सकती है और बाद में किसी दिन भी। साधु ने कहा- बेटा, यह तुम्हारी सांस या मेरी सांस ईश्वर की दी हुई है। हमारा अधिकार जब अपनी सांस पर नहीं है तो जीवन पर कैसे रहेगा? इसे भगवान नियंत्रित करते हैं। लेकिन हम मान बैठे हैं कि सांस तो चलती ही रहती है। इस पर क्या ध्यान देना। इसीलिए तुम भी पूछ रहे हो कि भगवान के होने का प्रमाण क्या है। इस दुनिया में रात- दिन का होना, चांद- सितारों और ग्रहों का निश्चित समय पर ही तय है। ये ग्रह आपस में टकराते नहीं। रात और दिन ठीक समय पर होते हैं। यह सब कौन नियंत्रित करता है? यह भगवान ही हैं जो पूरी सृष्टि को चला रहे हैं।
सुन कर युवक शांत हो गया। वह गहरे सोच में डूब गया। उसे लगा कि जिन घटनाओं को वह सामान्य समझ रहा है, वे दरअसल सामान्य नहीं हैं।

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