Saturday, December 11, 2010

वैष्णव देवी की यात्रा में एक चमत्कार


विनय बिहारी सिंह

यह घटना मेरे कार्यालय के एक सहकर्मी ने सुनाई। उनके एक मित्र अपनी पत्नी और मां के साथ वैष्णव देवी के दर्शन करने गए। वहां पहाड़ी रास्ते की चढ़ाई थी। मित्र की मां के घुटने में अचानक तकलीफ बढ़ गई। लेकिन उनके मन में प्रबल इच्छा थी कि माता के पिंड का दर्शन करूं। बेटे ने हालांकि मना किया था कि तुम्हारे घुटने में तकलीफ है। मत जाओ। हम माता का प्रसाद यहीं ला देंगे। लेकिन उनकी मां ने कहा- बचपन से मेरी साध है कि मैं मां वैष्णव देवी के पिंड का दर्शन करूं। चाहे जो हो जाए, मैं जाऊंगी जरूर। लेकिन कुछ दूर चढ़ने के बाद उनका शरीर साथ नहीं दे पा रहा था। वे थक कर बैठ गईं और मन ही मन माता की गुहार लगाने लगीं। तभी उन्होंने देखा कि नीचे थोड़ी दूरी पर कोई महिला बुर्का पहने खड़ी है। उनके मन में डर बैठ गया। पता नहीं कौन है। कोई महिला के वेश में गुंडा- बदमाश तो नहीं । इस डर से वे उठ खड़ी हुईं और मंदिर की तरफ चढ़ने लगीं। बुर्काधारी महिला भी चलने लगी। जब वे लोग रुकते तो वह भी रुक जाती। जब वे लोग चलने लगते तो वह भी चलने लगती। उन लोगों के मन में और शंका और भय गाढ़ा होने लगा। मित्र की मां थोड़ी देर बैठ- बैठ कर चलती रहीं। लेकिन एक समय ऐसा आया कि उन्हें लगा अब वे और नहीं चल सकतीं। उन्होंने कहा- अब और नहीं। माता को अगर यही मंजूर है कि मैं बीच रास्ते से घऱ लौट जाऊं तो यही सही। तभी भीड़ का कोलाहल सुनाई पड़ा। बेटे ने कहा- मां, देखो मंदिर आ गया। यह शोर- गुल मंदिर से ही आ रहा है। थोड़ी सी हिम्मत और कर दो, तुम्हें माता के दर्शन मिल जाएंगे। सचमुच मंदिर पास आ गया था। मित्र की मां के चेहरे पर खुशी छलक आई। वे बोलीं- क्या? माता का मंदिर आ गया? वे झटके से उठीं और चल पड़ीं। आखिर उन्होंने माता वैष्णव देवी का दर्शन किया और प्रसाद पाया। उनके जीवन की साध पूरी हुई। बाहर आकर उन्होंने बुर्काधारी महिला की बहुत खोज की। वह कहीं दिखाई नहीं पड़ी। तभी बेटे ने कहा- मां, वह बुर्काधारी महिला कोई गुंडा- बदमाश नहीं था। मुझे तो लगता है, वह स्वयं माता वैष्णव देवी थीं। तुम्हें मंदिर तक पहुंचा गईं।
उनकी मां ने कहा- ठीक कहते हो बेटा। वह माता ही थीं। मेरी साध पूरी कर गायब हो गईं। उनका मैं सदा ऋणी रहूंगी। वही संसार चला रही हैं। मेरी साध कैसे नहीं पूरी करतीं.।

4 comments:

vandana gupta said...

्रोमांच हो आया …………सच ऐसा होता है।

परमजीत सिहँ बाली said...

रोचक पोस्ट।

PN Subramanian said...

कभी कभी ऐसा भी होता है.

Unknown said...

अदद हल्की सी मुस्कान चेहरे पर और मन में श्रद्धा जगा दी आपकी पोस्ट ने।