Wednesday, August 4, 2010

(coutesy- BBC Hindi service)

दिल अच्छा तो

दिमाग़ रहे बच्चा

दिल

1500 लोगों पर किए गए शोध में सामने आया कि दिमाग़ अगर बूढ़ा हो जाए तो सिकुड़ने लगता है.

अमरीका में एक शोध में सामने आया है कि अपने दिल को स्वस्थ रखने से दिमाग़ जल्दी बूढ़ा नहीं होता.

बॉस्टन यूनिवर्सिटी की टीम ने ये शोध 1500 ऐसे लोगों पर किया जो देखने में तो चुस्त थे लेकिन उनका दिल सुस्त था यानी उनका दिल ख़ून की कम मात्रा ही शरीर में भेज पाता था. इन लोगों के दिमाग़ की स्कैनिंग से पाया गया कि इनका दिल काफ़ी बूढ़ा है.

इन 1500 लोगों के दिमाग़ से सामने आया कि दिमाग़ अगर बूढ़ा हो जाए तो सिकुड़ने लगता है.

अकेले इन नतीजों के आधार पर कोई स्वास्थ्य संबंधी हिदायत देना जल्दबाज़ी होगी लेकिन इन नतीजों से समझ आता है कि दिल और दिमाग़ का स्वास्थ्य एक दूसरे पर निर्भर करता है

डॉक्टर जेफ़रसन, मुख्य शोधकर्ता

'सर्कुलेशन' पत्रिका के अनुसार अगर हृदय कमज़ोर हो तो दिमाग़ को औसतन दो साल बूढ़ा बना देता है.

ये शोध 30 से 40 वर्ष की उम्र वाले युवाओं और उम्रदराज़ लोगों पर किया गया.

इन युवाओं में दिल की कोई बीमारी नहीं थी जबकि बुज़ुर्ग दिल की किसी न किसी बीमारी से पीड़ित थे. इसके बावजूद दोनों के ही नतीजे एक दूसरे से जुड़े हुए निकले.

दिल ईसीजी

सर्कुलेशन पत्रिका के अनुसार दिल का कमज़ोर आउटपुट एक बार में दिमाग़ को दो साल और बूढ़ा बना देता है.

मुख्य शोधकर्ता डॉक्टर ऐंजेला जेफ़रसन ने कहा, "शोध में हिस्सा लेने वाले ये लोग बीमार नहीं हैं. इनमें से

बहुत कम संख्या ऐसे लोगों की है जिन्हें हृदय रोग है. शोध के सभी नमूनों के नतीजों में एक तिहाई में कार्डिएक इंडेक्स कम पाया गया है. कार्डिएक इंडेक्स के कम होने का संबंध छोटे मस्तिष्क से है. इस पर आगे और अध्ययन की ज़रूरत है".

शोधकर्ताओं का कहना है कि जिनपर शोध किया गया है उनमें दिमाग़ का सिकुड़ना इस बात का संकेत है कि कुछ गड़बड़ है.

अगर डिमेंशिया यानी मनोभ्रंश हो तो दिमाग़ और ज़्यादा सिकुड़ जाता है.

किसी का दिल अगर शरीर में ख़ून की कम मात्रा देता है तो इसका मतलब है कि मस्तिष्क तक भी ख़ून की कम मात्रा ही जा रही है. यानी मस्तिष्क के पोषण के लिए ज़रूरी पोषक तत्व और ऑक्सीजन भी दिमाग़ को कम मिल रहा है.

डॉक्टर जेफ़रसन ने कहा, "अकेले इन नतीजों के आधार पर कोई स्वास्थ्य संबंधी हिदायत देना जल्दबाज़ी होगी लेकिन इन नतीजों से समझ आता है कि दिल और दिमाग़ का स्वास्थ्य एक दूसरे पर निर्भर करता है."

बॉस्टन स्कूल ऑफ़ मेडिसिन की टीम इन सभी लोगों पर अपना शोध जारी रखेगी. आगे उनका मक़सद ये जानना होगा कि समय के साथ दिमाग़ में बदलाव के कारण याददाश्त पर भी कोई असर पड़ता है या नहीं.

2 comments:

honesty project democracy said...

इस युग में दिल और दिमाग दोनों का स्वस्थ होना चमत्कार से कम नहीं क्योकि नकली सरकार,नकली खाद्य पदार्थ ,नकली शिक्षा,नकली न्याय ,नकली प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति सबकुछ नकली ही नकली तो इंसान कोई असली कैसे रह सकता है ...?

K.P.Chauhan said...

shodhkartaa ne jo kuchh bhi likhaa hai wo shatpritishat theek hai ,unki mehnat ki daad deni chaahiye or unki salaah ke mutaabik yadi ham apne dil ko swasth rakhenge to hamaaraa sampoorn narwas systam hi sahi rahegaa
dhanywad sahit