Friday, August 20, 2010

शांति से ओतप्रोत एक आश्रम

विनय बिहारी सिंह


पिछले दो दिन मैंने पश्चिम बंगाल के शहर पुरुलिया के एक अत्यंत शांत आश्रम में बिताए। दो साल पहले तक विख्यात योगी परमहंस योगानंद के सिद्ध शिष्य स्वामी विद्यानंद जी रहते थे। अब वे शरीर में नहीं हैं। योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया के एक सन्यासी स्वामी कृष्णानंद जी वहां बीच- बीच में आ कर रहते हैं। इन दिनों स्वामी कृष्णानंद जी वहीं पर हैं। संयोग ऐसा बना कि मैं पुरुलिया गया और इसी आश्रम में रहा। इसका नाम है- परमहंस योगानंद आश्रम। छोटा सा लेकिन अत्यंत मनोरम आश्रम। गुरु परमहंस योगानंद और परमगुरुओं भगवान श्रीकृष्ण, महावतार बाबाजी, लाहिड़ी महाशय, स्वामी श्री युक्तेश्वर जी की सजीव मूर्तियों वाला मंदिर देख कर मैं देर तक वहां बैठा रहा। ऊपर वाले एक कमरे में स्वामी विद्यानंद जी की सजीव मूर्ति है। इस मूर्ति को देख कर कोई भी भ्रम में पड़ सकता है कि स्वामी जी आंखें बंद करके बैठे हैं। अगर मैं नहीं जानता कि स्वामी जी शरीर छोड़ चुके हैं तो मैं भी यही सोचता। अपने जीवन में मैंने ऐसी सजीव मूर्ति पहले कभी नहीं देखी थी। मैंने उस कलाकार को मन ही मन आभार जताया। स्वामी कृष्णानंद जी ने मुझे स्वामी प्रणवानंद जी की लिखी गीता की व्याख्या दी। यह दुर्लभ पुस्तक है। करीब ७० साल पहले लिखी इस पुस्तक को स्वामी प्रणवानंद जी ने लिखी थी। स्वामी कृष्णानंद जी ने पहल नहीं की होती तो शायद यह पुस्तक हमें और पढ़ने को नहीं मिलती क्योंकि इसके नए संस्करण नहीं छपे । स्वामी कृष्णानंद जी ने इस दुर्लभ पुस्तक को ढूंढ़ा और कठिन हिंदी शब्दों को योग्य व्यक्ति से सरल और बोधगम्य कराया। फिर अपने ट्रस्ट से प्रकाशित किया। गुरु परमहंस योगानंद जी ने योगी कथामृत में स्वामी प्रणवानंद जी के बारे में विस्तार से लिखा है। एक अध्याय प्रणवानंद जी पर ही है। इस पुस्तक के प्रति मेरी ललक बढ़ती जा रही थी। लेकिन कहीं पढ़ने को नहीं मिल पाई। अचानक स्वामी जी ने जब यह पुस्तक मुझे दी तो मेरे आनंद की सीमा नहीं रही। मैंने इसे अपना सौभाग्य माना। जो श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय के बारे में नहीं जानते उन्हें बताना आवश्यक है कि उन्नीसवीं शताब्दी में अपने गुरु के आदेश से उन्होंने ही क्रिया योग की दीक्षा देनी शुरू की ( उनके महान गुरु महावतार बाबाजी ने हिमालय में उन्हें दीक्षा दी थी)। योग की यह विलक्षण क्रिया है। इसके बारे में परमहंस योगानंद जी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक योगी कथामृत (आटोबायोग्राफी आफ अ योगी) में लिखा है। स्वामी विद्यानंद जी की एक अनन्य भक्त और पुत्री जैसी शिष्या ने यह आश्रम बनवा दिया था। उन्हें सभी मां कहते हैं। वे बिल्कुल शांत भाव से इस आश्रम के अपने कमरे में रहती हैं और ध्यान व पठन- पाठन में व्यस्त रहती हैं। मां से मैंने बातें कीं।
स्वामी विद्यानंद जी ने परमहंस योगानंद जी से तब दीक्षा ली थी जब वे कुछ दिनों के लिए अमेरिका से भारत आए थे। स्वामी जी ने पुरुलिया के पास के एक गांव लखनपुर में योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया का आश्रम बनवाया जो अत्यंत मनोहारी है। उन्होंने उस इलाके में स्कूल, इंटर कालेज और डिग्री कालेज बनवाए। परमहंस योगानंद जी ने जो गुरुकुल परंपरा का स्कूल- ब्रह्मचर्य विद्यालय- रांची में खोला उसी के अनुरूप स्वामी विद्यानंद जी ने यह विलक्षण काम किया। सिर्फ परोपकार के लिए। ताकि गुरु प्रसन्न हों, ईश्वर प्रसन्न हों। स्वामी विद्यानंद जी ९० वर्षों तक जीवित रहे और जीवन पर्यंत परोपकार, सेवा और मदद करते रहे। स्वामी कृष्णानंद जी को उन्होंने अपना काम सौंप दिया है। स्वामी कृष्णानंद जी ने इस आश्रम को और सेवा कार्य को चलाए रखा है। मैं स्वामी जी के लिए एक किताब ले कर गया था, जिसकी उन्हें जरूरत थी। स्वामी जी ने मुझे उपहारों से लाद दिया। यह मेरे जीवन का विलक्षण अनुभव था। वे सन्यासी हैं, लेकिन सिर्फ देना जानते हैं। मुझे उन्होंने जो उपहार दिए हैं, वे जीवन भर की थाती हैं

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