Saturday, August 21, 2010

सती सावित्री पर फिल्म

विनय बिहारी सिंह


बांग्ला भाषा में एक फिल्म हाल ही में रिलीज हुई है- महासती सावित्री। हिंदी में धार्मिक फिल्में फिलहाल नहीं बन रही हैं। लेकिन जब मैं किशोर वय का था तो हिंदी में धार्मिक फिल्में खूब बनती थीं। भक्त प्रह्लाद और संत ग्यानेश्वर, हरि दर्शन, हर- हर महादेव आदि फिल्में देख कर अच्छा लगता था। भीड़ भी खूब होती थी। लेकिन आजकल ऐसी फिल्मों का अभाव खटकता है। लेकिन बांग्ला में- महासती सावित्री नाम की फिल्म आई है। एक राजा की बेटी सावित्री विलक्षण जीवट, आस्था और भक्ति का प्रतीक थी। उसकी निष्ठा इतनी मजबूत थी कि उससे यमराज भी हिल गए। धार्मिक कथाएं हमें बहुत ताकत देती हैं। सती सावित्री के पति सत्यवान की युवावस्था में ही मृत्यु हो गई। पति की उम्र उतनी ही थी। यह बात सावित्री शादी के पहले से जानती थी। जिस दिन पति की मृत्यु होनी थी, उसके चार दिन पहले से ही वह अग्निकुंड में होम कर ध्यान में बैठ गई। तीन दिन और तीन रात उसने कुछ नहीं खाया पीया और ध्यान में बैठी रही। चौथे दिन सावित्री का गरीब पति (सावित्री ने मां- बाप को राजी कर गरीब लेकिन घनघोर धार्मिक परिवार में शादी की थी। वह यह भी जानती थी कि युवावस्था में सत्यवान की मृत्यु का योग है, फिर भी उसके गुणों ने सावित्री को मोहित कर दिया। ) जंगल में लकड़ी काटने गया। सावित्री जानती थी कि आज के ही दिन अनहोनी घटेगी। वह अपने पति के साथ जंगल में गई। थोड़ी देर बाद पति सत्यवान ने कहा कि उसे कमजोरी महसूस हो रही है। वह एक पेड़ की छाया के नीचे लेट गया। सावित्री ने अपने पति का सिर अपनी गोद में रख लिया। धीरे- धीरे वह सो गया। तभी मुकुट पहने यमराज वहां पहुंचे। सावित्री ने उनसे आदर के साथ पूछा- महाराज आप कौन हैं? यमराज ने अपना परिचय दिया और कहा कि तुम्हारे पति की मृत्यु हो गई है। मैं उसकी आत्मा को ले जाने आया हूं। देखते देखते यमराज, सत्यवान की आत्मा को ले चला। सावित्री भी यमराज के पीछे पीछे चली। यमराज लाख कहता कि वह लौट जाए लेकिन सावित्री ने कहा कि पति के साथ चलना उसे अच्छा लग रहा है। इसलिए यमराज उसे कुछ दूर चलने दें। सावित्री के सद्गुणों और व्यवहार से प्रसन्न हो कर यमराज ने उसे चार वर मांगने को कहा। सावित्री ने सबसे पहले अपने श्वसुर के लिए स्वास्थ्य मांगा। दूसरा वर श्वसुर का खोया साम्राज्य, तीसरा वर अपने पिता के लिए सौ संतानें मांग लिया।सावित्री के तीन वर मांगने के बाद यमराज चकित था। आखिर यह कैसी महिला है कि अपने लिए कुछ नहीं मांग रही है। तभी सावित्री ने कहा- वर दीजिए कि मेरे सौ पुत्र हों। यमराज ने इसे भी मान लिया और कहा- तथास्तु। यमराज ने कहा- अब तो लौट जाओ बेटी। सावित्री बोली- कैसे लौट जाऊं भगवन। आपने मुझे सौ पुत्र का वर दिया और पति की आत्मा लिए जा रहे हैं। मेरे पति का जीवन लौटाएंगे तभी तो मैं पुत्रवान होऊंगी? यमराज सावित्री से हार गया। सावित्री का व्यवहार, उसकी विनम्रता और उसकी बुद्धिमत्ता विलक्षण थी। उसने सत्यवान की आत्मा उसके शरीर में लौटा दी और वर दिया कि सत्यवान ४०० वर्षों तक जीवित रहेगा और धन धान्य से परिपूर्ण होगा। तुम उसके साथ पर्याप्त सुख भोगोगी। सावित्री वापस पति के शरीर के पास गई और उसके सिर को गोद में रखा। सत्यवान ने आंखें खोली। सावित्री ने अपने पति को अपने प्रयासों से जीवित किया। यह कथा महाभारत के समय की है। ऋषि मार्कंडेय जी यह कथा द्रौपदी को सुना रहे हैं। भारतीय संस्कृति में सावित्री को जीवट, साहस और विलक्षण प्रतिभा के पर्याय के रूप में देखा जाता है। जो यमराज को जीत ले वह साधारण मनुष्य तो नहीं ही होगा। सावित्री को इसीलिए आदर से देखा जाता है।

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