Friday, August 13, 2010

पगला बाबा से मुलाकात

विनय बिहारी सिंह


मेरे एक परिचित ने एक साधु से मुलाकात की जिनका नाम है पगला बाबा। वे स्थाई रूप से एक जगह नहीं रहते हैं। यानी वे घुमंतू साधु हैं। उन्हें पगला बाबा क्यों कहा जाता है? मैंने पूछा। उनका कहना है- उनके कपड़े ढंग के नहीं हैं। कभी अपने शरीर के माप से बहुत बड़ी कमीज पहन लेते हैं तो कभी धोती के बदले लंगोट और उसके ऊपर झोला जैसा कुर्ता। इसीलिए उनका नाम पड़ गया है- पगला बाबा। लेकिन वे हैं उच्चकोटि के साधु। एक दिन ऐसे ही एक मंदिर के बाहर कुछ परिचित लोगों के साथ वे बैठे हुए थे। एक व्यक्ति ने उनसे पूछा- हमारे जिन प्रिय लोगों की मृत्यु हो चुकी है वे कहां हैं? पगला बाबा ने कहा- वे लोग पृथ्वी पर जन्म लेने से पहले कहां थे? वे परिचित या आत्मीय तो पृथ्वी पर आने के बाद हुए। यह आत्मा कभी नहीं मरती। सिर्फ देह मरती है। तो जो आपकी आत्मीय थी वह देह थी। अगले जन्म में वह किसी और के घर जन्म लेगी। हो सकता है किसी अन्य देश में जन्म ले। उसके माता- पिता, भाई- बहन, मित्र, रिश्तेदार कोई और लोग हों। मृत्यु लोक एक स्वप्न की तरह है। इसके प्रपंचों में बहुत ज्यादा दिमाग नहीं खपाना चाहिए। इसलिए इस चक्कर में न पड़ो कि जो आत्मीय इस दुनिया से जा चुके हैं, वे अभी कहां होंगे। परमहंस योगानंद ने कहा है- यह दुनिया एक स्कूल है। इसमें हम सबक सीखने आए हैं। सबक क्या है? हम यहां ईश्वर की प्राप्ति के लिए आए हैं। लेकिन अनेक लोग यह भूल कर समझते हैं कि वे पैसा कमाने, देह सुख भोगने आए हैं। यहीं गड़बड़ी हो जाती है। क्या करने आए थे और क्या करने लगे। ईश्वर हमसे इतना प्रेम करते हैं। हम उन्हें क्यों भूलें? क्यों नहीं सबसे ज्यादा उन्हीं से प्रेम करें? अगर नहीं करेंगे तो इसमें हमारा ही घाटा है। पगला बाबा बोलते जा रहे थे- ईश्वर की सृष्टि कितनी अद्भुत है। जब सृष्टि इतनी अद्भुत है तो स्रष्टा कितना अद्भुत होगा? सोचिए। तब लगेगा कि हम ईश्वर को भूल कर कितनी बड़ी चीज खो रहे हैं। सब कुछ तो ईश्वर ही है। उसकी शरण में जाइए और अपने सारे दुखों से छुटकारा पाइए।

2 comments:

चोरी का सामान said...

अच्छा लगा

Unknown said...

iपागल तो हम सब हैं, गुणीजन और श्रद्धेय तो यह साधु ही हैं।

* जो आत्मीय थी वह देह थी।
* सृष्टि इतनी सुंदर बनाई तो सृष्टा कितना सुंदर होगा।
हम राह भटककर पैसा कमाने, मकान बनाने में लग जाते हैं। ईश्वर को भूल जाते हैं। ईश्वर से प्रेम करो।
अद्‍भुत बहुत खूब विनय बिहारी जी। साधुवाद।