Monday, November 2, 2009

प्रेम में रूपांतरण की ताकत

विनय बिहारी सिंह

यह कथा रामकृष्ण परमहंस सुनाया करते थे। एक शिकारी को पक्षियों का शिकार ही नहीं मिल रहा था। कई दिन बीत गए। एक दिन वह नदी के किनारे से गुजर रहा था। उसने देखा- एक साधु ताली बजा रहे हैं और भजन भी गा रहे हैं। पक्षी उनके कंधे पर बैठ रहे हैं। साधु उन्हें प्यार कर रहे हैं। यह शिकारी के लिए अद्भुत दृश्य था। आखिर इस साधु में क्या आकर्षण है? उसे देख कर तो सारे पक्षी भाग जाते हैं। शिकारी ने भी साधु की तरह दाढ़ी- मूंछें बढ़ानी शुरू कर दी। वह भी साधु की तरह कपड़े पहनने लगा। इस लालच में कि इस वेश में पक्षी आएंगे तो वह उन्हें धोखे से मार डालेगा। जब दाढ़ी पूरी तरह बढ़ गई तो उसने गेरुआ रंग का वस्त्र पहन कर उसी तरह ताली बजाने लगा और भजन भी गाने लगा। सचमुच पक्षी उसके कंधे पर बैठ गए औऱ चोंच से उसके गाल पर प्यार करने लगे। यह शिकारी के लिए नया अनुभव था। ऐसा तो उसके जीवन में कभी हुआ ही नहीं था। पक्षियों से उसका संबंध शिकार और शिकारी का था। प्यार का तो कभी रहा नहीं। पक्षियों का यह प्यार उसे अद्भुत लगा। वह रोज नदी में नहाने आने लगा और पक्षियों को बुलाकर कुछ देर उनके साथ रहने लगा। उसकी आत्मा पक्षियों को मारने से मना कर देती। वह प्यार करने वाले पक्षियों से क्रूरता से पेश ही नहीं आ पा रहा था। रामकृष्ण परमहंस कहते थे- यह है प्रेम के माध्यम से रूपांतरण। यह प्रेम अगर मनुष्यों के बीच हो तो पूरा समाज ही बदल जाए। और अगर यह प्यार ईश्वर के प्रति हो तो फिर आपका जीवन ही बदल जाएगा। कोई चिंता ही नहीं रहेगी। आनंद ही आनंद रहेगा। रामकृष्ण परमहंस कहते थे- सबसे ज्यादा हमसे ईश्वर ही प्रेम करता है। अगर उसके प्रेम का जवाब हम देंगे तो फिर हमारे जीवन में किसी चीज की कमी नहीं रहेगी।