विनय बिहारी सिंह
कहावत है कि हारिए न हिम्मत, बिसारिए न राम। परमहंस योगानंद ने कहा है- आपका जीवन कैसा बनता है, यह आपकी सोच पर निर्भर करता है। लोग अपने लक्ष्य को पाने के लिए ३० साल ३५ साल तक लगे रहते हैं। वे जितनी बार भी असफल होते हैं, उनमें पिछली बार से दुगुनी ताकत आ जाती है, उत्साह आ जाता है। असफल होने के बाद जो लोग निराश या दुखी होते हैं, वे संघर्ष का मजा नहीं ले सकते। जो आदमी मुसीबतों या तकलीफों में भी चट्टान की तरह डटा रहता है, वही बाद में सफलता का स्वाद चखता है। सहज कुछ भी पा कर आप उसका उतना मजा नहीं ले सकते जितना संघर्ष करने के बाद। इसका अर्थ यह नहीं है कि यहां दुख या तकलीफ को महिमामंडित किया जा रहा है। नहीं, बिल्कुल नहीं। लेकिन ऐसे भी लोग हैं जो जरा सी तकलीफ या कष्ट में बेचैन हो जाते हैं, हारने लगते हैं और उनको लगता है कि यह तो तकलीफों का पहाड़ टूट गया। लेकिन जैसे ही आप अपने से भी ज्यादा तकलीफ झेल रहे लोगों की तरफ देखते हैं तो आपको लगता है कि आपकी तकलीफ तो कुछ भी नहीं है। आप तो आराम से दो वक्त का भोजन कर रहे हैं। नाश्ता कर रहे हैं। ऐसे भी लोग हैं जो आपसे दुगुनी तकलीफ झेल कर भी ठीक से भोजन नहीं कर पाते। नाश्ता की तो बात ही छोड़ दी जाए। मनुष्य का जीवन विभिन्नताओं से भरा हुआ है। हर आदमी का तनाव अलग है औऱ उसे लगता है कि सबसे ज्यादा परेशान या दुखी वही है। बाकी लोग तो मजे में हैं। लेकिन कहावत है न- दूर के ढोल सुहावन। दूसरे को देख कर मन में यह सोचना कि अगला सुखी है, गलतफहमी भी हो सकती है। इसलिए जिसका यह संसार है, क्यों न उसी की याद की जाए। उसने चाहे जो सोच कर यह संसार बनाया, इतना तो तय है कि हम उसकी संतानें हैं। अपनी संतान की वह नहीं सुनेगा तो किसकी सुनेगा? हमने तो कहा नहीं था कि हमें इस नाम से इस रूप में अमुक जगह पैदा करो। भगवान ने खुद ही यह सब किया। हम इसके पहले कहां थे, यह याद भी नही है। तो जो सब जानता है, सर्वग्याता है, उसी की शरण में जाएं। यही तर्कसंगत और आसान भी है। सभी प्राचीन संतों औऱ ऋषि- मुनियों ने कहा है- जो इस ब्रह्मांड का मालिक है, उसी से सीधे संपर्क कीजिए। बस काम बन जाएगा।
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