Wednesday, November 11, 2009

साधक को ‌‌तब लगा- हां, ईश्वर कृपालु हैं

विनय बिहारी सिंह

एक बार एक साधक वाराणसी के विश्वनाथ मंदिर में पूजा करने जा रहे थे। आटोरिक्शा से उतर कर किराया देने की बारी आई तो उन्हें याद आया कि अपना पर्स तो वे होटल के कमरे में ही छोड़ आए हैं। पाकेट टटोलने के बाद उन्होने पाया कि शर्ट के ऊपर के पाकेट में सिर्फ दस रुपए थे। उन्होंने आटोरिक्शा वाले को किराया दे दिया। होटल स्टेशन के पास था और वहां से दूर था। वे लगभग मंदिर के करीब पहुंच चुके थे। उन्हें प्रसाद खरीदना था जिसके लिए उनके पास पैसे नहीं थे। वर्षों बाद वे इस प्रसिद्ध मंदिर में पूजा करने आए थे। कल उन्हें वापस दिल्ली लौट जाना था। प्रसाद चढ़ा कर घर ले जाने की तमन्ना उन्हें कचोट रही थी। आखिर उन्होंने सोचा कि वे होटल लौट जाएं औऱ पर्स लेकर आएं तब प्रसाद वगैरह चढ़ाएं। ज्यादा से ज्यादा घंटे भर की देर होगी। वे मायूस होकर मंदिर के द्वार पर यही सब सोच रहे थे। वहां से हटने का उनका मन भी नहीं कर रहा था। फिर सोचा कि वे पर्स ले आने के पहले एक बार बाबा विश्वनाथ का दर्शन तो कर लें। तब तक देखते क्या हैं कि सामने से उनकी बहन चली आ रही है जिसका ब्याह कलकत्ता में हुआ है। वे चकित और खुश हो गए। बहन भी उन्हें देख काफी खुश हुई। हालचाल पूछा। कहां ठहरे हैं, वगैरह पूछ लेने के बाद साधक ने कहा- मेरा तो पर्स ही होटल में छूट गया है। बहन बोली- तो दिक्कत क्या है। मैं प्रसाद चढ़ाने के पैसे दे देती हूं। कितने चाहिए- सौ, दो सौ। साधक ने कहा- १०१ रुपए का प्रसाद चढ़ाने की इच्छा है। इसके अलावा होटल तक जाने का किराया। बहन हंसने लगी। उसने भाई को यथोचित पैसे दिए। बहनोई भी उनकी इस भूल पर हंस रहे थे। साधक ने आनंद के साथ पूजा किया। प्रसाद दुकानदार से बंधवा लिया ताकि घर ले जा सकें। फिर बहन से पूछा- अचानक आज ही वाराणसी आने का तुम्हारा प्लान कैसे हुआ? बहन बोली- परसों सुबह तक कोई प्लान नहीं था। हम लोग बैठे सुबह की चाय पी रहे थे कि तभी पड़ोस के हमारी एक सहेली आई और बोली कि उसका वाराणसी जाने का प्रोग्राम रद्द हो गया है क्योंकि उसकी लड़की को देखने वाले लोग आ रहे हैं। उसने कहा - तुम चाहो तो मेरे टिकट पर वाराणसी घूम आओ। आज रात ही ट्रेन है। टिकट कैंसिल कराने से भी बहुत कम पैसा मिलेगा। इससे अच्छा है कि तुम लोग घूम आओ। बस उसी के टिकट पर हम लोग चले आए। उसने टिकट के पैसे भी नहीं लिए। हम तो वाराणसी आने की दो साल से सोच रहे थे। मंदिर आई तो देखा आप दरवाजे पर खड़े पता नहीं क्या सोच रहे हैं। तीनों लोगों ने साथ भोजन किया औऱ दिन भर साथ- साथ घूमते रहे। साधक बार- बार कहते रहे- ईश्वर कृपालु हैं, यह एक बार फिर साबित हो गया।

1 comment:

RAKESH MISHRA said...

ISWAR KE PRATI AAP KA SABAUT BAHUT HI SACCHA HAI MAI BHAI AAP KO APNI EK CHHOTI PAR SACH BAAT KAHANA CHAHTA HU MAI EK BAAR BINDHYACHAL MANDIR ME DARSHAN KE LIYE GAYA PAR MAINE SNAN NAHI KIYA THA KYOKI THAND BAHUT THI MERE LOGO NE MUCHHSE KAHA KI AGAR MAI NAHAYA HU TO HI ANDAR MAA KO CHHU SAKTA HU WARNA NAHI PAR MAI ANDAR CHALA GAYA AUR MAA KE PAAS PAHUCHANE SE KUCHH KADAM DUR PAR HI ME UPAR SE KISI MAHANUBHAV NE JAL KI BARISH KAR DI MAI SAYAD US WAQT NARAJ THA KYOKI MAI BHIG GAYA THA PAR PAR WO SAYAD MAA KA PRASAD THA JO MERE LIYE HI GANGA JAL KE RUP ME MERE UPAR GIRAYA GAYA THA YE THA MAA KA SHIRWAD