विनय बिहारी सिंह
जब राक्षस हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद से पूछा- तेरा भगवान कहां है? उसने प्रह्लाद को खंभे में बांध दिया था क्योंकि वह ईश्वर भक्त था। हिरण्यकश्यप कहता था कि वह अपने पिता का नाम जपे, उसकी पूजा करे। कृष्ण, कृष्ण रटना तो पागलपन है। उसने पूछा कहां है तेरा भगवान? और तलवार से उसकी हत्या करनी चाही। तो प्रह्लाद ने कहा- हममें तुममें खड्ग खंभ में घट घट व्यापत राम। यानी वह ईश्वर हममें है, तुममें है, तुम्हारी तलवार में है औऱ जिस खंभे से तुमने मुझे बांधा है, उसमें भी है। हिरण्यकश्यप अट्टाहास करने लगा। उसे वरदान मिला हुआ था कि उसे न कोई मनुष्य मार सकता है न जानवर, न देवता और न राक्षस। उसकी मृत्यु न दिन में हो सकती है न रात में और न दोपहर को। लेकिन भगवान के सामने किसी की कहां चलती है? वह तो सर्वशक्तिमान है। भगवान ने उसे मारने के लिए न दिन चुना और न रात। समय कौन सा चुना? शाम का। और खुद नृसिंह अवतार धारण किया। यानी आधा शरीर मनुष्य का और आधा सिंह का। इस तरह भगवान ने हिरण्यकश्यप का वध किया। तो यह कथा बताती है कि ईश्वर हर जगह है। बस ज्योंही आपका हृदय भगवान के लिए तड़पने लगा। आपका रोम- रोम भगवान को चाहने लगा। बस वे हाजिर हो जाते हैं। वे किसी न किसी रूप में आपकी मदद करते हैं, आपकी रक्षा करते हैं। कई बार यह महसूस कर कितना सुख मिलता है कि ईश्वर सर्वव्यापी है। यानी हर जगह मौजूद है- आम्नीप्रेजेंट। इसका लाभ यह है कि आप जब चाहें तभी ईश्वर से संपर्क कर सकते हैं। चाहे आप सुरंग में हों, हवाई यात्रा कर रहे हों, जमीन पर चल रहे वाहन में हों या कहीं भी हों। आप ईश्वर से कनेक्ट हो जाते हैं, ईश्वर से जुड़ जाते हैं। ईश्वर की धारा आपके भीतर बहने लगती है। इसके लिए ईश्वर के प्रति प्यार होना चाहिए। बिल्कुल स्वाभाविक प्यार। ऐसा नहीं कि हमें ईश्वर से जबर्दस्ती प्यार करना है। हम तो उसी के अंश हैं। हमारे भीतर ही वह बैठा है। और बाहर भी है । हमारे हृदय में है वह। जैसे ही हम ईश्वर को अपना हृदय देंगे, वे हमें अपने आगोश में बिठा लेंगे। वे तो हमारे लिए प्रतीक्षा में बैठे हैं।
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