Thursday, November 5, 2009

भय में विश्वास है लेकिन ईश्वर में नहीं

विनय बिहारी सिंह

अनेक लोग भय की कथाओं में बहुत रस लेते हैं। या सुनने या टीवी पर इस तरह की फिल्में या सीरियल देखने में बहुत रुचि लेते हैं। लेकिन जैसे ही भगवान की बात चलती है, टीवी बंद कर देते हैं। भगवान में उनको रस नहीं मिलता। यानी कई लोग काल्पनिक भय की कथा में सनसनी पाते हैं, लेकिन भगवान की बात में नहीं। है न आश्चर्य की बात? जिसने अनंत कोटि ब्रह्मांड बनाए हैं, उसमें कोई रुचि नहीं है। लेकिन एक निगेटिव बात में काफी रुचि है। ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि जहां- जहां वे नकारात्मक शक्तियों की कल्पना कर रहे हैं, वहां- वहां भगवान भी है। आप जिसके बारे में सोचेंगे, जिसकी बात करेंगे, जिससे प्रभावित होंगे, वही आपको आकर्षित करेगा। अगर कल्पना भी कर लें कि भूत का अस्तित्व है तो उसकी शक्तियों की एक सीमा है। लेकिन ईश्वर असीम है, अनंत है और सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी और सर्व ग्याता है। तब क्यों ईश्वर को छोड़ कर लोग भय और निंदा की बातें करते हैं। सभी संतों ने मनुष्य से कहा है- आप ईश्वर प्रधान व्यक्ति बनिए। आपका मंगल होगा। ईश्वर के राज्य में कोई भय नहीं, कोई चिंता नहीं है। ईश्वर हम सबका है। हम सबके भीतर भी है और बाहर भी। सर्वव्याप्त है वह। हमारा अस्तित्व भी उसी के कारण है। वह हमें प्यार करता है। जो लोग पाप के बारे में पूछते थे उनसे परमहंस योगानंद कहते थे - ईश्वर से नाता तोड़ना ही सबसे पाप है। भक्तों से वे कहते थे- ऐसा नहीं कि आप ही ईश्वर को प्यार करते हैं और उसे चाहते हैं, ईश्वर भी आपको प्यार करता है औऱ चाहता है। लेकिन बस, वह आस लगाए बैठा है कि आपके भीतर उसे प्यार करने की चाहत अपने आप पैदा हो। बिना किसी दबाव के। वह तो हमारे प्यार का भूखा है। बस हमें अपने भीतर उसके प्रति प्यार को बढ़ाते जाना है। ईश्वर के प्रति प्यार ही असली प्यार है। वही टिका रहेगा। मनुष्य का प्यार तो शर्तों पर आधारित है। लेकिन यहां यह नहीं कहा जा रहा है कि हमें आपस में प्यार से नहीं रहना चाहिए। बेशक हमें प्रेम औऱ सौहार्द से रहना चाहिए। लेकिन ईश्वर के प्यार की तुलना किसी भी प्यार से नहीं हो सकती।

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