Friday, June 26, 2009

राम में कबीर की आसक्ति

विनय बिहारी सिंह

कबीर ने एक जगह अत्यंत भक्ति के साथ लिखा है- कबीर कूता राम का......। यानी कबीर राम का दास है। कबीर की रचनाओं में राम बार- बार आए हैं। ये राम दशरथ पुत्र राम नहीं हैं। वे अनंत कोटि ब्रह्मांडों के स्वामी हैं। जिनके बारे में रामचरितमानस में भी कहा गया है-पग बिनु चलै, सुनै बिनु काना।कर बिनु कर्म करै विधि नाना।। यानी बिना पैर के वे चलते हैं, कान के बिना वे सुनते हैं, बिना हाथ के वे विभिन्न तरह के काम करते हैं। आगे की चौपाइयों में है कि बिना आंख के वे संपूर्ण ब्रह्मांड को देखते और उसे चलाते हैं। कबीर के राम अनंत हैं, अखंड हैं और उनके स्मरण मात्र से ही मनुष्य का कल्याण हो जाता है। एक प्रश्न आया है कि क्या भगवान कृष्ण या भगवान शिव के चित्रों को मन में रख कर उसी पर ध्यान करने से काम हो जाएगा। इसका उत्तर है- हां। जब तक ईश्वर का दर्शन नहीं होता, हम कैसे जानेंगे कि ईश्वर कैसे हैं? जो तस्वीरें प्रचलित हैं- राम के या कृष्ण के या भगवान शिव के या मां दुर्गा के उन्हीं पर ध्यान करने से लाभ होगा। क्या सचमुच लाभ होता है? इसका उत्तर है- हां। संतों ने ध्यान करने का यही तरीका बताया है। जिस तस्वीर पर आप ध्यान करेंगे, वही आपके प्रश्नों के उत्तर देगी। फिर वह प्रकाश में तब्दील हो जाएगी औऱ उस प्रकाश से आपका संपर्क बना रहेगा। जरूरी नहीं हर आदमी को ईश्वर का एक ही रूप दिखाई दे। संतों ने कहा है कि आप ईश्वर के जिस रूप को प्यार करते हैं, वे उसी रूप में आपके सामने प्रकट होते हैं। कुछ लोग भगवान कृष्ण के मुकुट और माला पहले, हाथ में बांसुरी लिए किशोर रूप को प्यार करते हैं। कृष्ण तो प्रेम के सर्वोच्च रूप माने जाते हैं। एक बार कृष्ण से प्यार हो जाए तो आप दिव्य प्रेम पाने के अधिकारी हो जाएंगे। दिव्य प्रेम सांसारिक प्रेम से भिन्न होता है। सांसारिक प्रेम तो स्वार्थ से भरा होता है। लेकिन दिव्य प्रेम बिना शर्त होता है। भगवान के प्रेम में कोई शर्त नहीं है। सांसारिक प्रेम में शर्त है। भगवान के प्रेम में शर्त नहीं है। कबीर का अपने राम से अत्यंत आत्मीय रिश्ता था। उनके राम ने उन्हें दिव्य प्रेम दे दिया था। क