Wednesday, June 3, 2009

आखिर अष्ठपाश हैं क्या


विनय बिहारी सिंह

पाश यानी बंधन। जो हमें बांध कर रखते हैं। ये आठ हैं- घृणा, लज्जा, भय, शोक, जुगुप्सा, जाति का अभिमान, कुल का अभिमान, आत्म अभिमान। जब तक इनसे मुक्ति नहीं मिलती, हम इनके जाल में तड़पते रहेंगे। कभी मानसिक तनाव तो कभी क्रोध तो कभी घुट- घुट कर जीना तो कभी मन में भारी असंतोष और बेचैनी। किसी से घृणा है तो कहीं लज्जा रास्ता रोके बैठी है, किसी बात का डर है तो किसी बात का शोक, पर निंदा कई लोगों के लिए नशा है, और किसी को जाति का घमंड है तो किसी को अपने खानदान का घमंड, किसी को खुद अपने पर ही घमंड है- मैं सुंदर हूं, या मेरा इतना बड़ा घर है, मैं पैसे वाला हूं, या इतना बड़ा अधिकारी हूं या इतना नाम और इज्जत है मेरी वगैरह वगैरह। लेकिन संतों ने कहा है अष्ठपाशों में से एक पाश भी हमारे भीतर रह गया तो वह आपको नचा कर रख देगा। आप स्वतंत्र नहीं रह पाएंगे। वह सपने में भी आपको नचाता रहेगा। आइए देखें कि इन अष्टपाशों में से कितने ऐसे हैं जो हमारे भीतर नहीं हैं। क्या हम किसी से घृणा नहीं करते हैं? अगर नहीं, तो बहुत अच्छा। क्या हमारे मन में कोई काम करते लज्जा नहीं आती? अगर नहीं तो बहुत अच्छा। आखिर हम लज्जा वाले काम करें ही क्यों। और भय? कहीं ऐसा न हो जाए, कहीं वैसा न हो जाए। तरह- तरह का भय। और कुछ नहीं तो मृत्यु का भय। किसी भयंकर बीमारी का भय। और शोक? पदोन्नति नहीं मिली तो शोक, कोई प्रियजन दुनिया छोड़ कर चला गया तो शोक, कोई ऐसी वस्तु नहीं मिली जिसके लिए ललक थी तो भी शोक। अब आइए देखें कि जाति का अभिमान और कुल का अभिमान क्या है? मेरे परिवार की बड़ी ताकत है, मेरे परिवार में अमुक अमुक बड़े पदों पर हैं। घमंड। कुछ नहीं तो अपने ही किसी बात का घमंड। ऋषियों ने कहा है- अष्टपाश एक साथ नहीं छूटते। धीरे- धीरे एक- एक करके छोड़िए। जब इन पाशों से मुक्त हो जाएंगे तो उद्धार निश्चित है। तब आप पाएंगे कि न कोई तनाव है और न ही कोई बेचैनी। बस आप शांति औऱ आनंद में मग्न हैं। आपको ईश्वर का नित नवीन आनंद मिलता रहेगा।