विनय बिहारी सिंह
घटना १८६२ ईस्वी की है। रामकृष्ण मठ के एक सन्यासी ने अपने संस्मरण में इसे लिखा है। तब रामकृष्ण परमहंस कोलकाता के पास दक्षिणेश्वर के विख्यात कालीमंदिर में रहते थे और उनसे मिलने के लिए धनी, गरीब सभी आते थे। एक थी गोपाल की मां। बाल गोपाल के रूप में भगवान श्रीकृष्ण चौबीसो घंटे उनके मन में रहते थे। किसी जमींदार के परित्यक्त बैठकखाने में वे रहती थीं। भिक्षा में जो मिला उसे पका कर खाती थीं और गोपाल, गोपाल की रट लगाए रहती थीं। एक दिन बाल गोपाल के ध्यान में वे गहरे उतर गईं। जब ध्यान टूटा तो भोजन बनाने की तैयार करने लगीं। अचानक उन्हें लगा कि कोई बच्चा उनकी पीठ पर झूल रहा है। उसके कोमल हाथ बहुत सुंदर हैं। बच्चे को सामने कर उन्होंने देखा कि यह तो स्वयं बाल श्रीकृष्ण हैं। अब तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वे खाना बनाना भूल गईं। घंटे भर उनसे खेलती रहीं। तब बाल गोपाल ने कहा कि उन्हें भूख लगी है। तभी से उनका नाम गोपाल की मां पड़ गया। उन्होंने कहा- बेटा, मेरे पास अच्छी वस्तुएं कहां से आएंगी। मैं तो गरीब और अनपढ़ हूं। मैंने कुछ नारियल के लड्डू बनाए हैं। लो, इसे ही खाओ। बाल श्रीकृष्ण ने उसे ही प्रेम से खाया। बाल श्रीकृष्ण उनके साथ नहाते थे, खाते थे और खेलते थे। गोपाल की मां को तो मानो स्वर्ग ही मिल गया था। वे बाल श्रीकृष्ण को लेकर रामकृष्ण परमहंस के पास पहुंचीं। वे उन्हें बहुत मानते थे। उनके पास पहुंचते ही बाल श्रीकृष्ण रामकृष्ण परमहंस की देह में समा गए। लुप्त हो गए। तब गोपाल की मां ने कहा- ओह, समझी। बाबा, तुम्ही बाल श्रीकृष्ण हो और तुम्ही रामकृष्ण परमहंस भी हो। इतने दिन तक तुमने यह बात छुपाई क्यों? तब रामकृष्ण परमहंस सरल और पवित्र हंसी के साथ बोले- जैसी तुम्हारी दृष्टि होगी, मैं तो वैसे ही दिखूंगा न गोपाल की मां। मैं तो कुछ नहीं हूं। मैं सिर्फ जगन्माता का दास हूं, उनका पुत्र हूं। बस। इसके बाद गोपाल की मां को बाल कृष्ण के अनेक बार दर्शन हुए। एक दिन वे दक्षिणेश्वर मंदिर में बैठ कर जाप कर रही थीं। तभी रामकृष्ण परमहंस आए औऱ उनसे हंस कर बोले- अब भी तुम जाप करती हो? तुम्हारा काम तो बन गया। गोपाल की मां ने पूछा- काम बन गया माने? रामकृष्ण परमहंस बोले- स्वयं श्रीकृष्ण ने तुम्हें दर्शन दिया है। अब जाप का क्या मतलब। अब तो उनसे संपर्क हो गया। इस संपर्क को जारी रखो। मन का लय श्रीकृष्ण मे हो जाए तो फिर जाप की जरूरत नहीं रहती। जैसे करेंट तार में दौड़ता रहता है, वैसे ही ईश्वर से सीधा संपर्क हो जाता है।
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