विनय बिहारी सिंह
कई बार जब आप ध्यान करने बैठते हैं तो कोई पुरानी घटना या कोई टीस या कोई दुख आकर आपको मानसिक रूप से हिलाने लगता है। ऐसे में कोई कैसे शांत हो कर कैसे ध्यान करे? एक उच्च कोटि की साध्वी ने इस संबंध में बहुत अच्छी बात कही है- जैसे जूते या चप्पल को आप बाहर खोल कर ध्यान के कमरे में आते हैं, ठीक उसी तरह तनाव, टीस या दुख वगैरह आप बाहर फेंक कर अंदर आ जाइए। फिर आपका ध्यान बहुत अच्छा होगा। एक साधक ने कहा- शुरू में तनाव या कोई घटना ठीक उसी समय मथने लगती है जब आप ध्यान करने बैठते हैं। हम बार- बार उसे दिमाग से हटाते हैं और वह बार- बार हमारे ध्यान को भंग करने ये विचार आ जाते हैं। मानों कोई ताकतवर गोंद हों, हटाए नहीं हटते हैं। इस संबंध में हमें गीता का एक संदर्भ याद करना चाहिए। भगवान कृष्ण से अर्जुन पूछते हैं- मन तो बड़ा चंचल और मथने वाला है, उसे नियंत्रित करना वायु को नियंत्रित करने जैसा दुष्कर है। इसे कैसे वश में करें? तो भगवान कृष्ण कहते हैं- हां, यह सच है कि मन को वश में करना बड़ा ही कठिन है, लेकिन अभ्यास और वैराग्य से इसे वश में किया जा सकता है। अभ्यास से यानी बार- बार मन को खींच कर भगवान के पास ले आया जाए। चाहे जितनी बार वह चकमा दे, उसे हर बार भगवान की शरण में ले आना चाहिए। यह हुआ अभ्यास। और वैराग्य? यानी यह महसूस करना कि आपसे निःस्वार्थ प्रेम कोई नहीं करता। अनकंडीशनल प्यार कोई नहीं करता। सभी कंडीशनल प्यार करते हैं। किसी न किसी मतलब से। और जिन्हें हम प्रेम करते हैं, वे भी इस दुनिया में स्थाई नहीं हैं। स्थाई तो हमारी देह भी नहीं है। तो स्थाई कौन है? अगर कोई स्थाई रूप से हमारा अपना है तो वह- एकमात्र भगवान हैं। सब एक न एक दिन यह दुनिया छोड़ कर चले जाएंगे। मैं भी एक दिन दुनिया छोड़ कर चला जाऊंगा। माता- पिता, बाल- बच्चे, पत्नी और दुनिया जहान सब धरे रह जाएंगे। जब सारी दुनिया हमें श्मशान पर छोड़ कर चली आएगी तो अंत में हमारे साथ भगवान ही रहेंगे। इसलिए क्यों न हम उनसे अभी से दोस्ती कर लें, उन्हीं से प्यार करें- त्वमेव माता, च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्चसखा त्वमेव। .......... त्वमेव सर्वं, मम देव देव।। इसीलिए ध्यान में जब आपको तरह तरह के विचार सताने लगें तो आप दिमाग या मन से कहिए कि शांत रहो। तुम्हारा एक ही सच्चा ठिकाना है- भगवान। इसके अलावा तुम जहां भी भटकोगे, व्यर्थ है। हर आदमी सार्थक काम करता है। तुम्हारी सार्थकता ईश्वर में है। वही सत्य है, बाकी मिथ्या।
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