विनय बिहारी सिंह
हम सभी तीन अवस्थाओं से रोज गुजरते हैं- हालांकि यह चक्र है। अगर जाग्रत अवस्था को पहला मानेंगे तो फिर सवाल उठ सकता है कि निद्रा अवस्था को ही पहला क्यों न मानें क्योंकि गर्भ में तो एक तरह से हम सब निद्रा अवस्था में ही रहते हैं। आइए इस तर्क से हट कर हम जाग्रत अवस्था से ही शुरू करते हैं। जाग्रत अवस्था मे हमारा कांशस माइंड काम करता रहता है और जो भी काम हम करते हैं उसी के माध्यम से होता है। फिर रात होती है और हम खा- पी कर सो जाते हैं। यह निद्रा अवस्था है। नींद में तो हमें पता ही नहीं रहता कि हम कहां हैं। नींद मे तो यह भी पता नहीं चलता कि हमारी कौन सी समस्याएं हैं। हमारे एक मित्र मजाक करते हैं कि नींद में तो यह भी नहीं पता चलता कि हम स्त्री हैं या पुरुष। इस स्थिति को सबकांशस माइंड नियंत्रित करता है। इस अवस्था में हमारी सारी इंद्रियां शिथिल पड़ जाती हैं। इसीलिए कहा जाता है कि रात में हल्का भोजन करना चाहिए। क्योंकि शिथिल अंगों को भारी मेहनत नहीं सुहाता और अगर भारी भोजन करने के बाद सुबह उठते हैं तो हमारा मन और शरीर भारी- भारी लगते हैं। नींद में हम गहरे आराम में होते हैं। इसीलिए जब सो कर उठते हैं तो तरोताजा महसूस करते हैं। हम खूब रुचि से चाय पीते हैं या जो चाय नहीं पीते वे रुचिपूर्वक पानी पीते हैं औऱ आनंद अनुभव करते हैं। संतों ने कहा है यह ध्यान जैसी अवस्था है। ध्यान में औऱ नींद में अंतर यह है कि ध्यान में सुपरकांशस माइंड काम करता है और नींद में सब कांशस माइंड़ काम करता है। है न रुचिकर बात? नींद में आप ईश्वर के संपर्क में नहीं रह सकते लेकिन ध्यान अगर गहरा हो गया तो आप ईश्वर के संपर्क में आ सकते हैं और ईश्वरीय आनंद से सराबोर हो सकते हैं। अब आइए स्वप्न वाली अवस्था पर गौर करें। स्वप्न में जो भी घटना घटती जाती है वह बिल्कुल सही लगती है। कुछ लोगों का दिल तो स्वपन से अचानक जगा देने पर भी जोर- जोर से धड़कता है। यह स्वप्न के साथ तादात्म्य स्थापित करने के कारण होता है। हम कई लोगों को स्वप्न देखते समय कई बार प्रत्यक्ष चीखते- चिल्लाते हुए भी पाते हैं। लेकिन जब आदमी जागता है तो उसे लगता है- हे भगवान, यह तो स्वप्न था। कोरा सपना, जिसका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है। संत कहते हैं यह दुनिया भी एक तरह का स्वप्न ही है। आप अपने जीवन की बीती हुई घटनाएं याद करके देखिए- लगता है वह सब स्वप्न जैसा ही था जो बीत गया। संतों की बात तभी सच लगती है। अपने जीवन की कई घटनाएं तो हम भूल भी जाते हैं। यह क्या है? इसीलिए ईश्वर को ही सत्य कहा गया है। सब कुछ मिथ्या और ईश्वर ही सत्य। लेकिन सांसारिक काम भी जरूरी हैं। जब हमारा कर्तव्य पूरा हो जाए तो बस ईश्वर की गोद जा कर बैठ जाएं। सबको प्रेम करने वाले प्रिय भगवान। वे सिर्फ हमारी बाट जोहते रहते हैं। हमारा प्यार चाहते हैं। और हम उधर ध्यान नहीं देते- कहते हैं यह काम कर लें तो भगवान को इत्मीनान से याद करेंगे। लेकिन वह समय कभी नहीं आता। अगर भगवान को याद करना है तो इसी व्यस्तता में ही समय निकालना पडेगा। समय को हासिल करना होगा। वरना दिन पर दिन बीतता जाएगा औऱ भगवान को हम प्रेम से याद नहीं कर पाएंगे।
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