Wednesday, June 17, 2009

अपने में सिमटे रहना यानी खुद को बांधे रहना

विनय बिहारी सिंह

कई लोग सिर्फ अपने बारे में ही सोचते रहते हैं और परेशान रहते हैं। इसीलिए ऋषियों ने कहा है कि खुद का विस्तार कीजिए। हम जितने सीमित होते हैं, परेशानियां उतनी ही बड़ी दिखती हैं। मान लीजिए हम आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं। तो सिर्फ अपनी तंगहाली के बारे में सोचते रहेंगे तो व्यर्थ के तनाव में उबलेंगे। लेकिन जैसे ही दिमाग अपने जैसे तंगहाल लोगों पर जाएगा तो मन कहेगा- मैं तो अकेले इस हालत में नहीं हूं। हजारों लोग मेरी ही जैसी परिस्थिति में जी रहे हैं। जब उनमें अपनी परिस्थिति को सुधारने की हिम्मत है तो फिर मैं क्यों परेशान हूं। यह सोचते ही आपके मन में हिम्मत बंधती है। खुद का विस्तार जरूरी है। तब परेशानियां छोटी हो जाती हैं। शादी ब्याह की परंपरा खुद का विस्तार करने की ही व्यवस्था है। पहले आदमी अकेले होता है। फिर शादी होती है औऱ परिवार बढ़ता है। तब मनुष्य खुद के अलावा पत्नी और बच्चों के बारे में सोचने लगता है। उसका दायरा थोड़ा सा बढ़ता है। लेकिन अगर वह अपने परिवार के लिए ही चक्की की तरह चलता रहा तो अंत में बूढ़ा हो जाएगा औऱ सुख- सुविधाएं जुटा कर इस दुनिया को छोड़ कर चला जाएगा। लेकिन वह जब सामाजिक सरोकारों से जुड़ता है तो उसे और भी आनंद आता है। इसीलिए संतों ने कहा है कि दूसरों की मदद कीजिए। जरूरी नहीं कि आप धन देकर ही किसी की मदद कर सकते हैं। नहीं। आप किसी जरूरतमंद आदमी को अपना एक पुराना कपड़ा ही दे सकते हैं। मान लीजिए आपकी कोई कमीज पुरानी पड़ गई है। आप उसे अब नहीं पहनते। तो उसे किसी ऐसे भिखारी या जरूरतमंद को दे दीजिए जो नंगे बदन हो। इसमें आपका कोई नुकसान नहीं हुआ और किसी गरीब को खुशी मिल गई। छोटी- छोटी चीजें किसी को बड़ी खुशी भी दे सकती हैं, यह हम सोच नहीं पाते। एक सामान्य सा कदम, किसी के जीवन में खुशी ला सकता है। आपके कारण अगर किसी का चेहरा खिल जाए तो आपको कितना सुख मिलेगा? लेकिन एक परिचित कह रहे थे कि आखिर किस किस की मदद करें। गरीबों की कोई कमी है? इस तरह सोचने से काम नहीं चलेगा। आप जिसे जरूरी समझते हैं, उसी की मदद कीजिए। लेकिन अगर आपको मदद बोझ लगता है तो फिर कोई बात नहीं। आप इसके बारे में बिल्कुल मत सोचिए। सचमुच खुद का विस्तार बहुत जरूरी है। आप एक वृहत्तर संसार से जुड़ जाते हैं। लगता है कि पूरी दुनिया आपकी है। लेकिन जब ईश्वर से भी जुड़ जाते हैं तब तो और भी आनंद आ जाता है। तब तो समूचा ब्रह्मांड ही आपको अपना लगने लगता है। हर पेड़, हर पौधा, प्रकृति का सौंदर्य, सूर्योदय औऱ सूर्यास्त सब के सब आपको प्यार करते से लगते हैं। कहावत है कि सौंदर्य तो देखने वाले की आंखों में होता है। यह सच है। अगर आपकी सोच व्यापक है तो आप सौंदर्य का पूरा- पूरा लाभ उठा सकते हैं। लगता है ओस की बूंद आपके लिए ही टपकी है। कोयल आपके लिए ही कूकी है और कोई फूल आपको ही लुभाने के लिए खिला है। यह है ईश्वर से प्रेम का आनंद। एक बार ईश्वर से प्रेम करके तो देखिए। आपका विस्तार हो जाएगा।

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

वहुत सुन्दर प्रेरक विचार प्रेषित किए हैं।धन्यवाद।