विनय बिहारी सिंह
रामकृष्ण परमहंस कहते थे कि भक्ति ऐसी होनी चाहिए जैसी कि तेल की ऐसी धार जो कभी रुकती न हो। यानी लगातार ईश्वर में ध्यान। एक भक्त ने पूछा कि यह कैसे संभव है? तो उन्होंने कहा कि ध्यान उस समय करना चाहिए, जब आप सारे काम निपटा लें। सांसारिक लोगों के लिए यही ठीक है। सुबह- सुबह उठ कर तुरंत ध्यान करने का लाभ प्रत्यक्ष दिखता है। इसी तरह रात को सारे कामों से निश्चिंत हो कर ध्यान करें तो आनंद आता है। ध्यान करते समय सारी समस्याएं और चिंताएं दिमाग से निकाल कर फेंक देनी होती हैं। क्योंकि अगर उन्हें निकाल बाहर नहीं करेंगे तो वे ही बार- बार आपके ध्यान में आती रहेंगी। जब आप दिमागी रूप से इन समस्याओं में ही उलझे रहेंगे तो ध्यान भी इन्ही समस्याओं पर केंद्रित हो जाएगा। भगवान का ध्यान फिर कहां हुआ? इसके लिए रामकृष्ण परमहंस और परमहंस योगानंद ने एक बहुत अच्छा उपाय बताया है- हर काम और हर सोच में भगवान को शामिल किए रहिए। बस, आपका काम हो गया। यानी आप आफिस जा रहे हैं तो सोचिए कि यह ईश्वर का काम है, आफिस का काम कर रहे हैं तो सोचिए कि यह ईश्वर का काम है। किसी से मिलने जा रहे हैं तो वहां भी ईश्वर की उपस्थिति बनाए रखनी पड़ेगी। इस तरह आपके जीवन में भगवान रच- बस जाएंगे। फिर क्या है, आनंद ही आनंद है। परमहंस योगानंद ने कहा है कि ईश्वर के पास एक ही चीज नहीं है। वह है- हमारा प्यार। ईश्वर चाहते हैं कि उनकी संतानें उन्हें प्यार करें। अपने मन से। वे चाहें तो हमारे मन में उनके प्रति प्यार जगा सकते हैं, लेकिन नहीं, वे चाहते हैं कि हम लोग स्वयं अपने हृदय में वह प्यार जगाएं। तब तो प्यार का मजा है। भगवान अगर हमारे प्यार के भूखे हैं तो हम भी तो उनके बिना बेचैन ही हैं। संसार में चैन कहां है। हर जगह तो स्वार्थ लपलपा रहा है। कहीं दुख है तो कहीं संताप, कहीं असंतोष है तो कहीं कोई कचोट। हां, प्यार भी है लेकिन वह स्वार्थ में पगा हुआ है। एक ईश्वर ही तो हैं जो हमें खुला प्यार देते हैं और खुला प्यार चाहते हैं। उनका प्यार अनंत है। कभी न खत्म होने वाला। सांसारिक वस्तुओं से तो ऊब भी हो जाती है। लेकिन भगवान से कभी ऊब हो ही नहीं सकती क्योंकि वे नित नवीन आनंद हैं। और यह आनंद हमेशा बढ़ने वाला है। हर क्षण नया आनंद। ऐसे सच्चिदानंद से कोई क्यों नहीं प्यार करेगा? कम से कम रात को सोते समय तो अवश्य ही उनका ध्यान करना चाहिए।
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waah
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saadhu saadhu
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