विनय बिहारी सिंह
भगवान शिव ने पार्वती जी को सृष्टि का गुप्त रहस्य बताने के लिए एकांत गुफा चुना। हिमालय में स्थित इस गुफा का नाम है- अमरनाथ। पिछले दिनों एक गांव की एक छोटी सी झील में कमल जैसा फूल खिला देख कर न जाने क्यों भगवान शिव की याद आई। कमल जैसा फूल बड़ा था और एक भौंरा उस पर मंडरा रहा था। झील का पानी मानो ठहरा हुआ था। कहीं कोई हलचल नहीं, कहीं कोई बेचैनी नहीं। वातावरण शांत था। संस्कृत में भगवान को- विमलम, अचलम कहा गया है। बिल्कुल अचल। भगवान शिव भी तो हमेशा शांत, स्थिर यानी अचल ध्यान में मग्न दिखाई पड़ते हैं। जब समुद्र मंथन में घातक विष निकलता है और उसे रखा कहां जाए, इसकी समस्या आती है। विष यूं ही छोड़ दिया जाता तो सांसारिक जीव बेहाल हो जाते। देवताओं ने शिव जी से प्रार्थना की तो वे सहज ही उसे धारण करने को तैयार ho gaye । उसे भगवान शिव ने अपने गले में ही रख लिया। नीचे उतरने नहीं दिया। इसीलिए तो उनका नाम नीलकंठ है। भगीरथ जब स्वर्ग से गंगा को धरती पर लाये तो उनका वेग इतना प्रचंड था कि लग रहा था, पूरी पृथ्वी बह जाएगी। तब वे भगवान शिव के पास गए। शिव जी उनकी प्रार्थना से पिघल गए और गंगा को अपनी जटाओं में उलझा लिया। उनका वेग कम हो गया। वे पृथ्वी पर आराम से बहने लगीं। जीवों को कष्ट से बचाने का काम भगवान शिव करते हैं। भ्रमवश कुछ लोग उन्हें मृत्यु का देवता कह देते हैं। दरअसल ऐसा है नहीं। अगर किसी को मृत्यु भय होता है तो वह महामृत्युंजय जाप करता है। यह शिव जी का ही जाप है। फ़िर वे मृत्यु देने वाले देवता कैसे हुए? शिव महापुराण में जगह- जगह शिव जी की कृपा भरी हुई है। सिद्ध महात्माओं ने कहा ही है- ओम नमः शिवाय का जाप करने से तनाव घटता है और आपके राह में आई परेशानियां नष्ट होती हैं। भगवान शिव आनंद के पर्याय हैं। एक और भ्रम है- भगवान शिव के तीसरे नेत्र को लेकर। कुछ लोग गलतफहमी में कहते हैं कि भगवान शिव का तीसरा नेत्र खुलते ही सब कुछ भस्म हो जाएगा। जबकि तीसरा नेत्र तो आध्यात्मिक नेत्र है और उसके खुलने से जीवों को कोई नुकसान कैसे हो सकता है? भगवान शिव तीसरे नेत्र से ही सबकुछ देखते हैं। वे सर्वव्यापी हैं, सर्वशक्तिमान हैं और सर्वग्य हैं।
2 comments:
आभार आपका!
waah waah
bahut umda !
badhaai !
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