Thursday, June 18, 2009

शांति और मौन

विनय बिहारी सिंह

हमारी आदत होती है कि घर में चैन से बैठते ही टीवी खोल देते हैं। गांवों में बिजली नहीं रहती तो लोग रेडियो सुनने लगते हैं। लेकिन चुप बैठना उन्हें अच्छा नहीं लगता। कुछ लोगों का कहना है कि चुप बैठे रहने से बोरियत होती है। कुछ लोग सवाल उठाते हैं कि चुप बैठने से फायदा क्या है? लेकिन मौन का महत्व समझना भी रोचक है। अनेक महात्मा मौन का एक दिन तय करते थे। उस दिन वे कुछ कहना होता था तो लिख कर कहते थे। लेकिन वे चाहते थे कि लिखना भी न पड़े। कुछ लिखना भी तो संवाद ही है। उससे बचा जाए। आखिर वे ऐसा क्यों करते थे? मौन भीतर झांकने का श्रेष्ठ माध्यम है। आप शांत हो कर ईश्वर का चिंतन कीजिए। यह भी मौन है। लेकिन आप मौन हैं औऱ आपके दिमाग में बवंडर चल रहा है तो इस मौन का कोई फायदा नहीं है। मौन का फायदा तो तब है, जब आपका दिमाग वश में हो। हमारे हाथ, पैर तो हमारे वश में रहते हैं, लेकिन हमारा दिमाग हमारे वश में नहीं रहता। आपने सोचा कि आप भगवान के बारे में लगातार सोचेंगे, ठीक है- दिमाग कुछ देर भगवान के बारे में सोचेगा, लेकिन चुपके से वह रास्ता बदल देगा और कुछ अन्य बातें सोचने लगेगा। आपको फिर उसे खींच कर भगवान पर केंद्रित करना होता है। लेकिन फिर दिमाग आपको चकमा देता है। यानी वह पागल व्यक्ति जैसा काम करता है। इसीलिए साधु- संतों ने कहा है कि ध्यान करने के पहले जाप करना चाहिए। कोई पवित्र धर्मग्रंथ पढ़ना चाहिए या किसी सिद्ध संत- महात्मा के बारे में सोचना चाहिए। जैसे- रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद वगैरह। इससे मन में अच्छी तरंगें उठती हैं। फिर धीरे- धीरे आपका ध्यान लगना शुरू हो जाएगा। कुछ दिनों बाद ही आपको ध्यान का आनंद भी मिलना शुरू हो जाएगा। बस, आपका काम हो गया। अब आपको ध्यान के लिए ज्यादा लड़ाई नहीं करनी पडेगी। बाद में तो अभ्यास से आप इस योग्य हो जाएंगे कि जब चाहे तब आप ध्यान लगा सकते हैं। आपको मौका मिलने की देर है। यही आदर्श स्थिति है। फिर आप लगातार ईश्वर के संपर्क में रहेंगे। आनंद ही आनंद। ईश्वर का अर्थ ही है आनंद। लेकिन जितनी देर आप ध्यान करें कृपा कर मन में कोई कामना न लाएं। धन की या घर की या कार की या और किसी चीज की। ध्यान के समय मन कामना रहित होना चाहिए। अन्यथा वह ईश्वर का ध्यान नहीं होगा, मकान या कार का ध्यान हो जाएगा। कृपया इसे ईश्वर का ध्यान ही बनाए रखें। बस ईश्वर या आप। कुछ लोगों का ढंग तो औऱ भी मजेदार होता है। वे कल्पना करते हैं कि वे ईश्वर की गोद में जाकर बैठ गए और बस निश्चिंत बैठे हैं औऱ आनंद में मग्न हैं। ऐसे लोग अत्यंत भाग्यशाली होते हैं। वे कल्पना करते हैं कि ईश्वर की बाहें उनके चारो तरफ लिपटी हैं। उनके ध्यान का यह तरीका उन्हें ईश्वर से संपर्क करा देता है। लेकिन आप कोई और तरीका भी निकाल सकते हैं। कई लोग तो जाप करते करते ही आनंद में डूब जाते हैं। सबका अपना अपना तरीका है।

4 comments:

Unknown said...

काफी अच्छी लगी ये बात | एक सवाल है; शरीर के बाहर की तकलीफों से तो ध्यान हटाया जा सकता है, शरीर के अन्दर की तकलीफों का क्या करें?

Unknown said...

भाई आशीश जी,
अंदर की तकलीफों का मतलब मैं ठीक से समझ नहीं पाया। अगर विस्तार से लिखें तो उसका उत्तर एक लेख के रूप में भी दिया जा सकता है। कृपया मेरे ई मेल पर लिखे- vinaybiharisingh@gmail.com

Himanshu Pandey said...

चिंतनीय आलेख । आभार ।
सच्चा शरणम्: यह हँसी कितनी पुरानी है ?

Rishi said...

kitni sundar bat kahi hai aap ne