विनय बिहारी सिंह
एक मरीज गांव से शहर डाक्टर के पास अपना इलाज कराने आया। उसे बुखार था। संयोग से जिस डाक्टर को वे दिखाने आए थे, वे शहर से बाहर गए हुए थे। अब क्या हो। शहर में रहने का कोई ठिकाना नहीं था। मरीज के साथ उसकी पत्नी थी। दोनों गांव के पास तक जाने वाली बस में बैठ गए। बस में मरीज का बुखार बहुत तेज हो गया। तीन घंटे बाद जब मरीज बस से उतरा तो उससे बुखार के मारे चला नहीं जा रहा था। गांव अब भी तीन किलोमीटर दूर था। अंधेरी रात थी। अचानक झमाझम बारिश होने लगी। तभी पत्नी की नजर पास की एक साधु की कुटिया पर पड़ी। दोनों वहां गए और दरवाजा खटखटाया। एक वृद्ध साधु ने दरवाजा खोला। मरीज की पत्नी ने अपनी समस्या बताई। साधु ने हंस कर दोनों को अंदर बुलाया। मरीज कुटिया में बिछी चटाई पर लेट गया। साधु ने उन्हें प्रसाद के रूप में बताशा खिलाया और मरीज की सेवा करने लगे। साधु कपड़े की पट्टी को पानी में भिंगो कर मरीज के ललाट पर रखना शुरू किया। बीच- बीच में वे एक जड़ी का रस पिला देते थे। रात भर साधु नहीं सोए और मरीज की सेवा करते रहे। भोर में मरीज का बुखार उतर गया। पत्नी को राहत मिली। उसने साधु के चरण छुए। कहा- महाराज, आपने इतनी कृपा की कि हम तो आपके ऋणी हो गए। कोई जान न पहचान और हमें अपनी कुटिया में शऱण दी और रात भर सेवा की। आपने रात में खाना नहीं खाया और हमें तो खाने की इच्छा ही नहीं थी। साधु ने कहा- बेटी, मैं रात को खाना नहीं खाता। तुम लोगों को खिलाने के लिए मेरे पास कुछ था नहीं। इसलिए मैं दवा पिला कर और बुखार उतारने में मदद कर तुम्हारी सेवा कर रहा था। यह तो मेरा सौभाग्य है कि मैं तुम लोगों की सेवा कर सका। पत्नी को आश्चर्य हो रहा था। वह बोली- बाबा, इसमें सौभाग्य की क्या बात है। मरीज को तो कोई शरण नहीं देना चाहता। सभी उससे घृणा करते हैं। आपने तो बिना किसी संकोच या घृणा के सेवा की। साधु बोले- बेटी, पहली बात- इस मरीज में भी तो भगवान है। सौभाग्य इसलिए कि भगवान ने तुम लोगों को मेरी कुटिया में सेवा के लिए ही भेजा। मैं इसे भगवान को खुश करने का एक मौका मानता हूं। मेरा प्रिय भगवान मेरी सांसों में बसा है। भगवान खुश, तो मैं खुश। मैं तो भगवान से कुछ नहीं मांगता। मैं कहता हूं- भगवान, तुम्हारी जो इच्छा हो, वही करो। मैं उसी में खुश हूं। तुम्हारी जो मर्जी वही करो। इसी में मुझे आनंद है। तुम तो सब जानते हो, मुझे क्या चाहिए यह क्या तुमसे छुपा है? हे अंतर्यामी मुझे तो बस तुम्हारा प्रेम चाहिए। तुम्हारा प्रेम ही तो दुर्लभ है।
2 comments:
साधुवाद!!
काश ये भावना चिकित्सकों में आ पति |
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