विनय बिहारी सिंह
परमहंस योगानंद जी कहते थे- ईश्वर से संपर्क यानी सभी दुखों का अंत। उनके कहने का अर्थ था- ईश्वर सारी बुराइयों को नष्ट कर डालते हैं। कब? जब आपका ईश्वर से संपर्क पुष्ट हो जाए। संपर्क कब पुष्ट होगा? जब आपको लगने लगेगा कि आप ईश्वर से जुदा हो कर रह ही नहीं सकते। यह कैसे संभव है? हां संभव है। हम अपनी इच्छा से तो पैदा हुए नहीं हैं। अपनी इच्छा से तो माता- पिता चुना नहीं है। यह सब ईश्वर ने किया है। अगर यह ईश्वर ने किया है तो जरूर वे हमारे मां-बाप हैं, आश्रयदाता हैं। इस पर कई मित्र सवाल करते हैं कि ईश्वर हैं या नहीं यह हम कैसे मानें। हमारा वजूद ही ईश्वर के होने को प्रमाणित कर देता है। और हमारे पुराने ऋषि- मुनियों ने झूठ नहीं कहा है कि ईश्वर से संपर्क करना ही मनुष्य के जीवन का मुख्य उद्देश्य है। उन्होंने अपने गहरे ग्यान को हमसे बता दिया है। अगर हम उस पर अमल नहीं करते औऱ सांसारिक माया- जाल में उलझे रहते हैं तो कष्ट, तनाव और उलझनें मिलेंगी ही। बड़ा सीधा रास्ता है। ईश्वर में गहरा विश्वास हो और बल्कि विश्वास ही नहीं हो, ईश्वर का भीतर अहसास भी हो। क्योंकि विश्वास तो हिल भी सकता है, लेकिन अगर आपको ईश्वर का अहसास हो रहा है, तो फिर आप आंख मूंद कर ईश्वर और उसकी सत्ता में भरोसा करेंगे, उसके सामने नतमस्तक होंगे औऱ वह आप पर कृपा करेंगे, आपको प्यार करेंगे। ईश्वर का अहसास कैसे हो? लगातार उनसे प्रार्थना करने पर यह अहसास होता है। यदि आप लगातार प्रार्थना करते हैं- हे ईश्वर, मैं नहीं जानता कि आप कैसे हैं, कृपा कर बताइए कि आप कैसे हैं। मैं कुछ नहीं जानता, आप खुद ही बताइए। बस आप देखेंगे कि एक दिन ईश्वर ने आपसे संपर्क साध लिया। फिर आपको कोई चिंता नहीं। सब कुछ आपका है। जो ईश्वर का वह आपका। एक बार उससे संपर्क तो हो जाए।
3 comments:
आभार!!
सुन्दर विचार प्रेषित किए हैं।आभार।
achhe vichar ham tak pahuchane ke liye dhanyawaad
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