Wednesday, June 10, 2009

टेलीफोन की तरंगें और मनुष्य के मन की तरंगें

विनय बिहारी सिंह

अगर आपने अपने कंप्यूटर (खासकर कैथोड रे ट्यूब मानीटर या सीआरटी) के पास अपना मोबाइल रखा है तो फोन आते ही कंप्यूटर स्क्रीन या कहें मानीटर स्क्रीन बुरी तरह कांपने लगता है। बल्कि फोन आने के कुछ सेंकेंड पहले ही कांपने लगता है। इसे हम स्वाभाविक मान कर मोबाइल फोन उठाते हैं और बात करने लगते हैं। लेकिन क्या टेलीफोन की तरंगे अत्यंत शक्तिशाली नहीं हैं? अगर नहीं होतीं तो कंप्यूटर स्क्रीन कांपता ही क्यों। हमारे ऋषियों ने कहा है कि मन की तरंगें इन तरंगों से और भी ज्यादा शक्तिशाली हैं। जैसे कंप्यूटर स्क्रीन मोबाइल फोन की तरंगों को पकड़ लेता है, उस तरह मन की तरंगों को पकड़ने वाला सूक्ष्म यंत्र आम घरों में उपलब्ध नहीं है। कंप्यूटर तो फिर भी घरों या कार्यालयों में उपलब्ध है। मन की तरंगें जैसी होंगी, आपका व्यक्तित्व भी वैसा ही होता जाएगा। मान लीजिए आपने अपनी जिंदगी को बोरियत भरा मान लिया है या यह मान लिया है कि मैं तो भाग्यशाली नहीं हूं, अमुक अमुक लोग भाग्यशाली हैं। तो बस, ये तरंगे निकल रही हैं और आपका लगातार नुकसान हो रहा है। लेकिन आपको इसका पता नहीं है। इसलिए कभी यह मान कर मत चलिए कि आप भाग्य के कमजोर हैं। बल्कि आप अपना भाग्य बदल सकते हैं, अगर लगातार कोशिश करें। मन की तरंगें काफी शक्तिशाली होती हैं। संतों ने कहा है कि आप कभी भी नकारात्मक सोच के शिकार न बनें। जब भी आपको नकारात्मक सोच घेरने लगे, तुरंत उसको मन से झटक दें और कोई अच्छी बात सोचने लगें। इससे आपके व्यक्तित्व में भारी परिवर्तन होगा और आपके भीतर रचनात्मक शक्तियां पैदा होंगी। फिर आप अपने लिए ही नहीं अपने परिवार औऱ समाज के लिए भी अच्छा काम करेंगे। किसी घटना पर अफसोस करने के बजाय आप तय कर लें कि जो गलतियां हुई हैं अब मैं उन्हें नहीं दोहराऊंगा। बस उसी पर अमल कीजिए। अफसोस करने से आप खुद को दोष देंगे और यह सिलसिला चलता रहेगा। ठीक है एक बार आपने अफसोस कर लिया और पछतावा कर लिया। लेकिन दिन- रात पछताने का तो कोई अर्थ नहीं है। उसे सुधारना ही एकमात्र उपाय है। यदि संभव हो तो आप संबंधित व्यक्ति को पत्र लिख कर कह सकते हैं कि आपको अमुक बात का बहुत अफसोस है- मैंने तो गुस्से में यह बात कह दी थी। लेकिन बाद में बहुत अफसोस हुआ कि आखिर मैंने यह कहा ही क्यों। बस, वह आदमी अगर समझदार है तो आपकी साफगोई की प्रशंसा करेगा। लेकिन अगर वह आदमी साफ दिल का नहीं है तो पत्र न लिख कर ईश्वर से प्रार्थना कीजिए कि उसके दिल में आपके प्रति कोई बुरी बात न आए। साधु- संतों ने तो यह भी कहा है कि अगर आप ईश्वर के बारे में सोचेंगे, उनका ध्यान करेंगे तो आपके मन में अच्छी भावनाएं और तरंगें पैदा होंगी। ये तरंगें आपके और आपके परिवार या मित्रों के लिए शुभ फल देने वाली होती हैं। इसीलिए हमारे समाज में कहा जाता है कि जो सुबह शाम पांच मिनट के लिए भी भगवान को याद नहीं करता, वह दिन रात बेचैनी में ही जीवन गुजार देता है। उसका जीवन सुख औऱ शांति से दूर रहता है। लेकिन ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो ईश्वर का नाम लिए बिना भोजन नहीं करते। कुछ ऐसे हैं जो नहाते वक्त ही भगवान का नाम लेते रहते हैं। ईश्वर का नाम लेने में किसी वक्त की पाबंदी नहीं है। जब चाहे ईश्वर का नाम लीजिए और आनंद में रहिए।

1 comment:

बसंत आर्य said...

बहुत बढिया लिखा आपने