Tuesday, June 9, 2009

भावनात्मक मुक्ति कैसे पाएं

विनय बिहारी सिंह

भावनात्मक मुक्ति यानी इमोशनल फ्रीडम टेक्नीक। यह क्या है? मान लीजिए किसी के दिमाग में कोई डर बैठ गया है। उदाहरण के लिए अंधेरे में भूत का डर। अब वह अंधेरे से आतंकित रहेगा और उसका जीवन भय में डूबता- उतराता रहेगा। या किसी ने किसी की मृत्यु देखी है और वह उसके दिमाग में इस कदर बैठ गई है कि वह सपने भी मृत लोगों के ही देखता है। या किसी के प्रति मन में इतनी घृणा बैठ गई है कि वह निकलने का नाम नहीं ले रही है। मनोचिकित्सकों ने इसे मानसिक रोग कहा है और इससे मुक्ति के कई उपाय बताए हैं। उनका कहना है कि जैसे टार्च में आप बैटरी भरते हैं तो एक बैटरी का धनात्मक सिरा, दूसरे के ऋणात्मक सिरे से जोड़ते हैं तब जाकर टार्च जलता है। उसी तरह जब तक आपका दिमाग शांत और क्रमबद्ध चिंतन नहीं करता आपकी दिमागी हालत गड़बड़ी का शिकार रहेगी। भय, चिंता और तनाव का अधिकार उस पर बना रहेगा। मनोचिकित्सकों का कहना है कि तनाव या डर झेल रहे लोग, अपने दिमाग की बैटरियों के ऋणात्मक सिरे को धनात्मक सिरे से न जोड़ कर ऋणात्मकऋ को ऋणात्मक सिरे से ही जोड़ देते हैं। यानी- जब कोई तनाव होता है तो उसी के बारे में ज्यादा तनाव के साथ लगातार सोचते रहते हैं और आग में घी डालते रहते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि समस्या सुलझने के बजाय उलझती जाती है और आप गहरे तनाव के शिकार बनते जाते हैं। इसका उपाय यह है कि इस ऋणात्मक स्थिति को किसी धनात्मक यानी अच्छी घटना या उपाय से जोड़ दीजिए। पूरी स्थिति ही बदल जाएगी। आपके मन से उस तनाव का बोझ उतर जाएगा औऱ आप राहत की सांस लेंगे। यह कैसे संभव है? मान लीजिए कि आपका व्यवसाय घाटे में चल रहा है। आप इसे लेकर भारी तनाव में हैं। तो आप दिन रात यही सोचते रहेंगे कि अब तो मेरा व्यवसाय डूब जाएगा तो फिर आप अवसाद से घिरते जाएंगे। लेकिन इसके बजाय आप लगातार नई योजनाएं, नए प्लान बना कर अपने व्यवसाय को उबारने का प्रयास करते रहेंगे तो लगातार प्रयास का फल आपको जल्दी ही मिलेगा और आपका व्यवसाय पटरी पर आ जाएगा। बल्कि आपका लाभ दिनों दिन बढ़ता जाएगा। हमेशा धनात्मक बातें सोचने की बात हमारे ऋषियों ने भी कहा है। उनका कहना है कि सबके जीवन में दुख और परेशानियां आती हैं। लेकिन स्थायी नहीं होतीं। वे आती हैं और फिर चली भी जाती हैं। मनुष्य का काम है कि दृढ़ता के साथ जीवन में आगे बढने के उपाय करता रहे। ऋषियों ने यह भी कहा है कि उन लोगों के जीवन में परेशानियां कम आती हैं जो ईश्वर की शरण में रहते हैं। जो खुद को ईश्वर की संतान मानते हैं औऱ ईश्वर का नाम लिए बिना कोई काम नहीं करते उनके जीवन में परेशानियां बहुत कम आती हैं। लेकिन कितने ऐसे भाग्यशाली लोग हैं जो ईश्वर को ही अपना मालिक मानते हैं? रामकृष्ण परमहंस कहते थे- मां काली ही ईश्वर हैं। उनके मुताबिक- मां मैं घर हूं, तू घरणी है। मैं रथ हूं, तू रथी है। मैं यंत्र हूं, तू यंत्री है। मां मुझे कुछ नहीं चाहिए। बस मुझे शुद्धा भक्ति दे दो।

2 comments:

निर्मला कपिला said...

बहुत प्रेरक आलेख है धन्यवाद्

Science Bloggers Association said...

अच्छा मनोविज्ञान है।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }