Thursday, June 4, 2009

परछाईं पकड़ कर खा लेने वाली शक्ति

विनय बिहारी सिंह

तुलसीदास के रामायण या रामचरितमानस के सुंदरकांड में एक प्रसंग आता है। हनुमान जी जब सीता जी की खोज में लंका जाते हैं तो वे समुद्र के ऊपर से उड़ रहे होते हैं। उस समुद्र में एक ऐसी राक्षसी रहती थी जो आकाश में उड़ते पक्षियों या अन्य जंतुओं की छाया पकड़ कर उन्हें अपने पास खींच लेती थी और उन्हें खा लेती थी। उसने अपनी आकर्षण शक्ति का प्रयोग हनुमान जी पर भी किया। उन्होंने उस राक्षसी का तुरंत वध कर दिया। फिर जब वे लंका पहुंचे तो नगर के प्रवेश द्वार पर ही लंकिनी नाम की राक्षसी मिल गई। हालांकि हनुमान जी मच्छर जितने छोटे आकार के हो कर लंका में घुस रहे थे। लेकिन फिर भी लंकिनी ने उन्हें देख लिया और कहा कि चोर ही तो मेरे भोजन हैं (यानी आप चोर की तरह जा रहे हैं, मेरा भोजन बनिए)। तब हनुमान जी ने उसे एक मुक्का मारा और वह खून फेंकती हुई ढह गई। फिर किसी तरह शक्ति बटोर कर उठ खड़ी हुई और कहा- ब्रह्मा जी ने जब लंकेश रावण को वर दिया तो मुझे भी कहा था - जब तुम किसी बंदर के मारने से बेचैन हो जाओ तो समझ लेना राक्षसों के विनाश का समय आ गया है। लंकिनी दरअसल रामभक्त थी। लंकिनी ने ही हनुमान जी से कहा- प्रविसि नगर कीजै सब काजा। हृदय राखि कौसल पुर राजा।।
छाया को पकड़ कर अपने पास खींच लेने वाले प्रसंग से यह बात साफ हो जाती है कि यह कला या सिद्धि, प्राचीन काल में भी थी। आज जासूस हवाई जहाजों के लिए उन्नत देशों ने अपनी सीमाओं पर जो संवेदनशील यंत्र लगाए हैं, वे भी तो इन जहाजों को पकड़ कर खींच ही लेते हैं। या उनमें कुछ ऐसी खराबी पैदा कर देते हैं ताकि मजबूरन उन्हें उस आकर्षण कर रहे टावर के क्षेत्र में उतरना पड़े। लेकिन याद रहे हमारे ऋषियों में यह शक्ति होती थी कि उन्हें जिसे बुलाना होता था, वे अपनी आकर्षण शक्ति से ही उसे बुला लेते थे। उनका सारा काम आकर्षण शक्ति से ही होता था। लेकिन वे इस शक्ति का दुरुपयोग नहीं करते थे। लेकिन अगर किसी दुष्ट व्यक्ति या राक्षस के हाथ यह विद्या पड़ गई तो उसका दुरुपयोग होने लगता था। राक्षसी का प्रसंग ही इसका प्रमाण है। ऋषि जनकल्याण के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग करते थे। आज भी ऐसे अनेक लोग आपको मिल जाएंगे जो चुपचाप जनकल्याण का काम कर रहे हैं। लेकिन उन्हें कोई नहीं जानता। वे नाम के भूखे भी नहीं हैं। उन्हें तो बस सेवा करके ही सुख मिल रहा है। ऐसे लोगों के सामने श्रद्धा से सिर झुक जाता है।

3 comments:

Science Bloggers Association said...

ऐसे ही लोगों से समाज कायम है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Arvind Mishra said...

यह महज कल्पना मात्र है एक बहुत ही उर्वर कल्पना !

रंजना said...

बहुत सही कहा आपने.....सुन्दर प्रेरणादायी पोस्ट....

आज का विज्ञानं उतना उन्नत नहीं हुआ है कि उन तथ्यों तक पहुँच पाए....और लोग जबतक तर्क और वर्तमान वैज्ञानिक आधार पर पौराणिक तथ्यों को कसते रहेंगे ,उसे नकारते ही रहेंगे.....लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वे गलत थे...