Saturday, November 7, 2009

सीमित कौन करता है मनुष्य को?

विनय बिहारी सिंह

यूनिवर्सिटी आफ कैलीफोर्निया के वैग्यानिकों ने कहा है कि उन्होंने ऐसा कंप्यूटर तैयार कर लिया है जो मनु्ष्य के दिमाग में चल रही बातों का पता लगा सकता है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि भविष्य में सपनों को भी रिकार्ड किया जा सकेगा। लेकिन जब कंप्यूटर नहीं था तो हमारे ऋषि- मुनि किसी भी व्यक्ति के दिमाग को स्कैन कर लेते थे। चाहे वह व्यक्ति सामने हो या दूर। उनमें यह क्षमता थी कि वे बैठे कहीं और हैं और अपनी स्पष्ट आवाज में सौ मील दूर किसी व्यक्ति को अपना निर्देश दे रहे हैं। उनका मानना था कि मनुष्य खुद को शरीर मान कर अपने को सीमित कर रहा है। दरअसल मनुष्य को शरीर से ऊपर उठ कर चिंतन करना चाहिए। मनुष्य सच्चिदानंद आत्मा है। उसका स्वरूप विराट है। यानी मनुष्य असीम है। वह अपने ही बनाई सीमाओं में तड़पता रहता है। इसी पाश या बंधन को काटना है। भगवान शिव को इसलिए पशुपति कहते हैं क्योंकि वे हमारे पाशों को काट देते हैं। हमें निर्भय और मुक्त कर देते हैं। तो फिर मनुष्य को सीमित कौन करता है? उसकी इंद्रियां। इंद्रियां हमें अपना गुलाम बनाए रहती हैं। कई लोग भोजन को लेकर इतने आसक्त होते हैं कि बिना खाए रहने की वे कल्पना भी नहीं कर सकते। लेकिन हमारे संतों ने उपवास रखने की सलाह दे रखी है। पूरे दिन औऱ रात उपवास रखिए। भोजन के गुलाम न बनिए। इससे आपके शरीर की सफाई होगी। जीभ पर नियंत्रण रखिए। बोलने में और खाने में भी जीभ पर अंकुश हो। तब हमारा जीवन आनंदमय हो सकता है। नियंत्रण में कष्ट तो है। लेकिन जिन लोगों को सुगर (रक्त शर्करा) की बीमारी है, वे तुरंत मीठी चीजें, आलू और चावल वगैरह छोड़ देते हैं। क्योंकि उन्हें अपने जीवन को बचाना होता है। लेकिन अगर किसी बीमारी के बिना यूं ही जीवन में परहेज के लिए कहा जाए तो ज्यादातर लोग सलाह नहीं मानते। उन्हें लगता है कि ठीक ही तो चल रहा है जीवन। लेकिन शरीर के भीतर सूक्ष्म रूप से क्या चल रहा है, इसे कौन जानता है? ऋषि- मुनि तो फिर भी जानते थे क्योंकि उन्हें दिव्य दृष्टि मिली हुई थी। आज भी ऐसे साधक हैं लेकिन उन्हें गिने- चुने ही लोग जान पाते हैं। ऐसे लोग अपना प्रचार नहीं चाहते क्योंकि उनकी साधना में बाधा आती है। भीड़- भाड़ ऐसे लोगों को पसंद नहीं। तो ऋषि- मुनियों ने हमें संयम सिखाया और कहा कि रोग व्याधि से दूर रहने के लिए अमुक- अमुक कदम उठाने चाहिए। अति किसी चीज में नहीं होना चाहिए। सोने और जागने का भी नियम उन्होंने बना दिया। कहा- मनुष्य को ब्रह्म मुहूर्त में जग जाना चाहिए। आज कितने लोग हैं जो ब्रह्म मुहूर्त में उठते हैं? जो उठते हैं वे भाग्यशाली हैं। कम से कम सूर्योदय के पहले तो उठना अति आवश्यक है। लेकिन अनेक लोग सूर्योदय के बाद भी सोते रहते हैं। इसीलिए ऋषि पातंजलि ने यम और नियम बनाए। हमें यम और नियम से सूत्रों के सहारे चलने में खुशी होनी चाहिए। आखिर फायदा तो हमारा ही है।

1 comment:

RAJNISH PARIHAR said...

ये सब जो अब विज्ञान खोज कर रहा है,वो सब प्राचीन भारत में मौजूद था.....कोई माने तब ना....