Thursday, May 14, 2009

अपने केंद्र से जुड़े रहें, आनंद ही आनंद है



विनय बिहारी सिंह


एक बार रामकृष्ण परमहंस से किसी ने पूछा कि ध्यान कहां किया जाना चाहिए? तो उन्होंने उत्तर दिया- प्रसिद्ध स्थान तो हृदय है। और एक स्थान है- हमारी दोनों भौंहों के बीच का स्थान। जहां हम टीका लगाते हैं। यहां भी ध्यान कर सकते हैं। तो समाधि क्या है? अपनी चेतना का ईश्वर में लय को समाधि कहते हैं। यानी जब आप खुद को भूल कर ईश्वर में लय कर दें तो वह अवस्था समाधि हो जाती है। आपको अपना होश नहीं है। क्योंकि आप तो ईश्वर में घुल गए हैं। आप रहे कहां? जब यह समाधि टूटती है तब आप अपनी चेतना में लौटते हैं। तब ईश्वर की चेतना से आपका संपर्क टूट जाता है। लेकिन इसका असर भी देर तक रहता है। संतों ने कहा है कि अपने केंद्र से जु़ड़े रहें, वहां आपको आनंद ही आनंद मिलेगा। तो यह केंद्र कहां है? यह केंद्र है आपका हृदय। या दोनों भौहों के बीच का स्थान। तो हृदय या भौहों के बीच का स्थान हमारा अंग ही है, फिर इससे जुड़ने का सवाल कहां पैदा होता है? आप कहेंगे- यह तो अजीब बात है। जो चीज हमारा अंग है, उससे अब और किस तरह जुडेंगे? उससे तो प्राकृतिक तौर पर हम जुडे हैं। हां, यही तो बात है। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है- मैं सभी के हृदय में मौजूद हूं। तो क्या हम उस ईश्वर से जुड़े हुए हैं जो हमारे हृदय चक्र में मौजूद है। क्या हमारा हृदय शुद्ध रहता है? यही सोचने की जरूरत है। उसी ईश्वर रूपी केंद्र से जुड़ने के बाद हम आनंद में डूब जाते हैं। सचमुच वहां आनंद ही आनंद है। एक बार एक भक्त ने अपने गुरु से पूछा- गुरु जी, मुझे ईश्वर के दर्शन क्यों नहीं होते, मैं तो उनका भजन, कीर्तन और ध्यान वगैरह करता रहता हूं। गुरु ने उत्तर दिया- ध्यान या पूजा करने से ईश्वर नहीं मिलते। जब ध्यान अपने आप होने लगे तब ईश्वर मिलते हैं। करने और होने में फर्क है। आपका जीवन जब ध्यान का पर्याय हो जाए, पूजा का पर्याय हो जाए तो ईश्वर आपसे दूर नहीं है। ऋषि- मुनियों ने यह बार- बार कहा है।