Saturday, May 23, 2009

ऋषि वाल्मीकि का रूपांतरण

विनय बिहारी सिंह

आइए आज वाल्मीकि का स्मरण करें क्योंकि उनकी कथा विलक्षण और रोचक है। ऋषि वाल्मीकि एक जमाने में खूंखार डकैत थे। एक दिन उन्हें कोई लूटने को नहीं मिला तो उन्होंने एक ऋषि को ही पकड़ लिया। ऋषि ने पूछा कि जो कुछ मेरे पास है, तुम ले लो लेकिन तुम्हें एक प्रश्न का उत्तर देना पड़ेगा- तुम जो पाप कर रहे हो, उसमें क्या तुम्हारे परिवार वाले भी शामिल होंगे? वाल्मीकि ने कहा कि उन्हें नहीं मालूम। तो ऋषि ने कहा कि मुझे तुम एक पेड़ में बांध दो और जाओ परिवार वालों से पूछ आओ। वाल्मीकि घर गए औऱ पहले उन्होंने अपनी पत्नी से पूछा- मैं जो पाप कर रहा हूं क्या तुम उसमें हिस्सेदार हो? पत्नी ने कहा- मैं क्यों हिस्सेदार होऊंगी? मैं आपकी पत्नी हूं। आपका धर्म है कि मेरी सुरक्षा और पोषण करें। लेकिन इसके लिए आप क्या करते हैं, इससे मेरा क्या लेना- देना। वाल्मीकि ने अपने मां- बाप, बेटे- बेटी सबसे पूछा। सबने कहा- आपके पाप में हम क्यों भागीदार होंगे? आपका पाप आप उसका फल भोगेंगे। हम सब अलग- अलग इस दुनिया में आए हैं, अलग- अलग समयों पर भी इस पृथ्वी से जाएंगे। पाप और पुण्य में तो किसी के साथ कोई भागीदारी नहीं करता। सब अकेले हैं इस मामले में। वाल्मीकि तो चकित हो गए। उन्हें लगा कि जब उनके पाप में कोई भागीदार नही है तो फिर वे डकैती जैसा पाप कर्म क्यों करें। उनके मन में तीव्र वैराग्य पैदा हुआ। वे उन ऋषि के चरणों में गिर गए जिन्हें उन्होंने पेड़ से बांध रखा था। और फिर उनसे कहा- प्रभु, कृपया मुझे अपना शिष्य बना लें। ऋषि ने उन्हें कहा- आप राम- राम कहिए। वाल्मीकि ने कोशिश की लेकिन वे राम जैसा साधारण नाम भी नहीं उच्चारण कर पा रहे थे। तब ऋषि ने कहा कि ठीक है- आप मरा- मरा कहिए। फिर मैं लौट कर आऊंगा तो आगे की साधना बताऊंगा। वाल्मीकि ने यह नहीं पूछा कि आप कब आएंगे? उन्हें तो गुरु मंत्र मिल गया। वे मरा- मरा ही कहने लगे। मरा- मरा कहते हुए उनके मुंह से राम- राम निकलने लगा। यह पवित्र नाम लेते हुए धीरे- धीरे उनका रूपांतरण हो गया। उन्हें ईश्वर प्राप्ति हो गई और वे स्वयं ऋषि हो गए।