Saturday, May 9, 2009

हम जीते किस लिए हैं?

विनय बिहारी सिंह

कई बार जब दिमाग शांत होता है तो क्या यह सवाल नहीं उठता कि हम जीते किस लिए हैं? जी हां। आखिर इस दुनिया में हम क्यों आए? क्या खाने, सोने और मनोरंजन करने के लिए? या फिर हाय, हाय करके धन कमाने के लिए? मकसद क्या है हमारे जीवन का? आप कहेंगे- सुख पाना। लेकिन अगर आपके पास सौ करोड़ रुपए हो जाएं, सुख के सारे साधन उपलब्ध हो जाएं तो आप सुखी हो जाएंगे? आप कहेंगे- पहले देकर तो देखिए। मुझे लगता है कि कुछ दिन के लिए भले ही हम सारे सुख पाकर आनंद में आ जाएं लेकिन यह स्थाई सुख नहीं होगा। संतों ने ठीक ही कहा है कि इंद्रियों का सुख क्षणिक होता है। एक बेहद आरामदेह सोफे पर आप बैठ कर बहुत सुख अनुभव करते हैं लेकिन जब दिन रात उसी सोफे पर बैठना हो तो वह सुख कम होता जाता है और एक दिन ऐसा आता है कि आपको वह सोफा सामान्य सुख वाला लगने लगता है। ऐसा क्यों? क्योंकि इंद्रियों का सुख हमेशा अस्थाई होता है। संतों ने ठीक ही कहा है कि बचपन से हमें इंद्रिय सुख ही सिखाया जाता है। कुछ लोगों को तो जीवन भर यह पता नहीं चल पाता कि इंद्रिय सुख के अलावा भी कोई सुख है जो कभी कम नहीं होता। कभी घटता नहीं है। हमेशा बढ़ता जाता है। आखिर वह कौन सा सुख है? वह सुख है- ईश्वर का सुख। जी हां, ईश्वर से प्रेम करके देखिए- आपको नित नवीन आनंद मिलेगा। यह आनंद अनंत मात्रा का और अनंत समय के लिए होगा। तो ईश्वर के साथ कैसे प्रेम करें? बस हमेशा यही याद रखना है कि ईश्वर ने हमें जन्म दिया है और वही हमारा जीवन चला रहा है। औऱ जब हमारा अंत होगा तो हम ईश्वर में ही मिल जाएंगे। जब हर स्थिति में हम ईश्वर के ही अधीन हैं तो क्यों न हम ईश्वर की ही शरण में जाएं। हमेशा यह याद रखें कि ईश्वर हमारे साथ है। हमारी रक्षा कर रहा है। एक बार ईश्वर पर भरोसा करके तो देखिए। कितना सुरक्षित हो जाते हैं आप। लेकिन हम तो मनुष्य में विश्वास करते हैं, किसी यंत्र पर भरोसा करते हैं लेकिन ईश्वर पर नहीं करते। दरअसल हमारा दिमाग इतना कंडीशंड हो गया है कि हम घूम- फिर कर वहां विश्वास करते हैं जहां से हमें कोई सुरक्षा नहीं मिलती। यह हमारा भ्रम है। एकमात्र हमारी रक्षा भगवान ही कर सकते हैं क्योंकि हम उन्हीं की गोद में बैठे हैं। तो प्रश्न था कि हम जीते क्यों हैं? तो जवाब है- ईश्वर से प्रेम करने के लिए। ईश्वर को प्राप्त करने के लिए हमारा जन्म होता है और इसीलिए हम जीते हैं। आपका प्रेम ईश्वर से जैसे- जैसे बढ़ता जाएगा, आपके जीवन की मुश्किलें उसी अनुपात में घटती जाएंगी या खत्म होती जाएंगी। तो इसलिए जीते हैं कि ईश्वर से करीब होते जाएं। अगर हम इस मकसद से भटक गए हैं और किसी और चीज के लिए जी रहे हैं तो हमारी क्षुधा कभी शांत नहीं होने वाली। हमारे मन का असंतोष कभी खत्म नहीं होगा। हमारा दुख जस का तस रहेगा। लेकिन जैसे ही हम ईश्वर से प्रेम करने लगेंगे, बस सारे दुखों और परेशानियों का अंत हो जाएगा। आप हमेशा आनंद के सागर में हिलोरें लगाएंगे। एक बार ईश्वर से प्रेम करके तो देखिए।