Thursday, May 7, 2009

क्या हैं सूक्ष्म शक्तियां

विनय बिहारी सिंह

सूक्ष्म शक्तियां आखिर हैं क्या? इसे ही माइंड पावर कहा जाता है। यानी अपने मन को पूरी तरह एकाग्रचित्त करके उसे नियंत्रित कर लेना। मन कैसे एकाग्रचित्त होगा? मन को आप ईश्वर के किसी रूप पर एकाग्रचित्त करें। जैसे- भगवान शिव पर या राम या कृष्ण भगवान पर या दुर्गा मां पर या काली मां पर या हनुमान जी पर। फिर उनके नाम का जप, या रूप, गुण, महिमा वगैरह का स्मरण करते हुए मन को उन्हीं में लय कर देना। जैसे आप उस देवता से एकाकार हो गए हों। यह है ध्यान। जब ध्यान लग जाए और मन इधर- उधर न भटके तो आप इससे एक कदम आगे बढ़ें। कोई सकारात्मक काम करना चाहें तो उस काम को लेकर मन को दृढ़ करें कि वह काम हो रहा है और अवश्य पूरा होगा। आप देखिए कि ऐसा कुछ दिनों तक करने से आपका वह सकारात्मक काम हो ही जाएगा। मन का संकल्प दृढ़ हो तो कोई भी अच्छा काम किया जा सकता है। हां, लेकिन मन इधर- उधर नहीं भटकना चाहिए। अगर भटके तो उसे बार- बार खींच कर उसी देवता या देवी पर केंद्रित करते रहें। एक दिन ऐसा आएगा कि आपका मन भटकेगा ही नहीं। जब मन भटकना बंद हो जाता है तो आपकी सूक्ष्म शक्तियां जागृत होने लगती हैं। मैं एक ऐसे मरीज को जानता हूं जिनकी किडनी खराब हो चुकी है और डाक्टरों ने उन्हें डायलिसिस पर रखने की सलाह दी है। लेकिन उन्होंने डायलिसिस लेने से इंकार कर दिया और सिर्फ माइंड पावर से ही खुद को स्वस्थ कर लिया। उनके हृदय का आपरेशन भी हो चुका है। पर वे माइंड पावर का इस्तेमाल कर खुद को लगातार ऊर्जावान और आशावादी बनाए रखते हैं। किडनी की इस हालत में ही उन्होंने मेरे साथ ५०० मीटर एक पहाड़ की चढ़ाई की। उनकी उम्र ६५ साल है फिर भी वे माइंड पावर के कारण खुद को युवा महसूस करते हैं। वे अत्यंत धार्मिक व्यक्ति हैं और हर रोज सुबह- शाम ध्यान करते हैं। आपको एक बार ध्यान करने का अभ्यास हो जाए तो फिर और किसी से कुछ पूछने की जरूरत नहीं है। ऊपर लिखा जा चुका है कि ध्यान किस तरह करें। बस अब बिना किसी आलस्य के जितनी जल्दी शुरू हो सुबह- शाम ध्यान करना शुरू कर दें। चाहे यह ध्यान ५ मिनट का ही क्यों न हो। धीरे- धीरे ध्यान की अवधि बढ़ा सकते हैं। कुछ अच्छे स्कूलों में तो ध्यान की भी कक्षाएं चलाई जाती हैं। कुछ जगहों पर हफ्ते में एक दिन की ध्यान कक्षाएं आयोजित की जाती हैं। लेकिन आप जब जागें, तभी सवेरा। ईश्वर के साथ संबंध जोड़ने में कभी देर नहीं होती। ऐसे भी अनेक साधक हैं जो ५५ साल की उम्र से ध्यान शुरू करते हैं औऱ पांच सालों के भीतर ही इतनी उन्नति कर लेते हैं कि लोग आश्यर्य में पड़ जाते हैं। मन की एकाग्रता के बारे में कहा जाता है कि जैसे लेंस के जरिए कागज पर सूर्य की किरणें एकाग्र करके डालने पर कागज जलने लगता है, उसी तरह मन को एकाग्र करके ईश्वर को पुकारने से वे आपको आपकी इच्छित वस्तु अवश्य देते हैं। बशर्ते कि वह चीज आपके जीवन के लिए आवश्यक हो।