महान संत समर्थ रामदास
विनय बिहारी सिंह
पंद्रहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध संत थे। उनका जन्म महाराष्ट्र में १६०८ ईस्वी में हुआ था। वे भगवान राम के अनन्य भक्त थे। वे अपने शिष्यों को सिखाते थे- राम का नाम लो। राम में ही डूबे रहो। शारीरिक आवश्यकताओं के बारे में जरूरत से ज्यादा मत सोचो। अपने हृदय में सदा राम को विराजमान रखो। वे भोर में चार बजे उठ जाते थे और गोदावरी नदी में कमर तक खड़े हो कर दोपहर तक रामनाम का जाप करते थे। इसके बाद वे भिक्षा मांगने निकल पड़ते थे। भिक्षा में जो भी मिलता था, उसे अपने प्रिय भगवान राम को चढ़ाते थे और तब जाकर भोजन करते थे। उनका मूल नाम नारायण था। वे शिवाजी के प्रेरणा स्रोत थे। उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में- दशाबोध, मानसे श्लोक (मन को संबोधित करते श्लोक), करुणाष्टक बहुत प्रसिद्ध हैं। उनका देहांत सन १६८२ में हुआ था। उन्होंने रामायण की रचना की जिसमें राम की लंका पर विजय का आकर्षक उल्लेख था। उनका कहना था- वासना, लालच, क्रोध, हिंसा और अहंकार आदि से सदा दूर रहना चाहिए। जो इनमें फंस जाता है वह दुख भोगता है। उनका कहना था कि राम का नाम जितनी बार दुहराया जाएगा, मनुष्य का कल्याण होगा।
विनय बिहारी सिंह
पंद्रहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध संत थे। उनका जन्म महाराष्ट्र में १६०८ ईस्वी में हुआ था। वे भगवान राम के अनन्य भक्त थे। वे अपने शिष्यों को सिखाते थे- राम का नाम लो। राम में ही डूबे रहो। शारीरिक आवश्यकताओं के बारे में जरूरत से ज्यादा मत सोचो। अपने हृदय में सदा राम को विराजमान रखो। वे भोर में चार बजे उठ जाते थे और गोदावरी नदी में कमर तक खड़े हो कर दोपहर तक रामनाम का जाप करते थे। इसके बाद वे भिक्षा मांगने निकल पड़ते थे। भिक्षा में जो भी मिलता था, उसे अपने प्रिय भगवान राम को चढ़ाते थे और तब जाकर भोजन करते थे। उनका मूल नाम नारायण था। वे शिवाजी के प्रेरणा स्रोत थे। उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में- दशाबोध, मानसे श्लोक (मन को संबोधित करते श्लोक), करुणाष्टक बहुत प्रसिद्ध हैं। उनका देहांत सन १६८२ में हुआ था। उन्होंने रामायण की रचना की जिसमें राम की लंका पर विजय का आकर्षक उल्लेख था। उनका कहना था- वासना, लालच, क्रोध, हिंसा और अहंकार आदि से सदा दूर रहना चाहिए। जो इनमें फंस जाता है वह दुख भोगता है। उनका कहना था कि राम का नाम जितनी बार दुहराया जाएगा, मनुष्य का कल्याण होगा।
1 comment:
जानकारी के लिए धन्यवाद.
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