Friday, August 3, 2012

रहीम के दोहे


तन रहीम है कर्म बस, मन राखो ओहि ओर। जल में उल्टी नाव ज्यों, खैंचत गुन के जोर।।2।। अर्थ : कविवर रहीम कहते हैं कि अपना शरीर तो कर्म के फल के नियंत्रण में है पर मन को भगवान की भक्ति में लीन रखा जा सकता है। जैसे जल में उल्टी नाव को रस्सी से खींचा जाता है वैसे ही मन को भी खींचना चाहिए। रहिमन वहां न जाइये, जहां कपट को हेत। हम तन ढारत ढेकुली, संचित अपनी खेत।।3।। अर्थ: कविवर रहीम कहते हैं कि उस स्थान पर बिल्कुल न जायें जहां कपट होने की संभावना हो। कपटी आदमी हमारे शरीर के खून को पानी की तरह चूस कर अपना खेत जोतता है/अपना स्वार्थ सिद्ध करता है।

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