Monday, August 13, 2012

तुलसीदास के दोहे

बिना तेज के पुरूष अवशी अवज्ञा होय! आगि बुझे ज्यों रख की आप छुवे सब कोय!! तुलसी साथी विपत्ति के विद्या, विनय, विवेक! साहस सुकृति सुसत्याव्रत राम भरोसे एक!! काम क्रोध मद लोभ की जो लौ मन मैं खान! तौ लौ पंडित मूरखों तुलसी एक समान!! राम नाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वार! तुलसी भीतर बहारों जौ चाह्सी उजियार!! नाम राम को अंक है , सब साधन है सून! अंक गए कछु हाथ नही, अंक रहे दस गून!! प्रभु तरु पर, कपि डार पर ते, आपु समान! तुलसी कहूँ न राम से, साहिब सील निदान!! हरे चरहिं, तापाहं बरे, फरें पसारही हाथ! तुलसी स्वारथ मीत सब परमारथ रघुनाथ!!

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