Monday, August 20, 2012

संत सूरदास की रचना

अंखियाँ हरि-दरसन की प्यासी।
 देख्यौ चाहति कमलनैन कौ, निसि-दिन रहति उदासी।।
 आए ऊधै फिरि गए आँगन, डारि गए गर फांसी।
 केसरि तिलक मोतिन की माला, वृन्दावन के बासी।।
काहू के मन को कोउ न जानत, लोगन के मन हांसी।
 सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कौ, करवत लैहौं कासी।।

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।