Thursday, February 16, 2012

Put Peace and Love First in Everything

by Joshua Lim



Stay strong in the Lord,
by doing things according to His will.
Work together as one,
by tolerating one another.

Above all, put peace and love above everything else,
by thinking positively of other people.

Trust in the Lord
in everything that you do.
Seek Him
for advices and guidance,
for His will to shine ever brighter
in the darkest night.

Listen to what the Lord says,
and be sensitive to the Holy Spirit.
Know that the Lord hears all prayers,
and is always by your side.
Talk to Him in your quiet time,
and build a relationship with Him.
Know that He’s with you,
even through the harshest times
when even your heart begin to doubt.
But know this..
even in your sleep and tiredness,
He comes and looks after you,
to protect and watch over you.
Ask yourself…
what greater power can come against
the power of the Almighty One?

Therefore seek the favor of the great I AM,
and see blessings into your life,
for who can shut the gates of the heavens
beside God Himself?
But also remember…God is just and righteous,
and do not overlook His judgment and anger.
Thus do not judge others so that you be not judged.
Be merciful so that you can receive mercy from God.

Be the salt of the earth; make a difference.
Be a history maker.
Everything starts with you yourself.
Love one another as you love yourself.
Obey the Word of the Lord.
Be aware of the traps
that Satan placed along your path.
Always be watchful and alert,
for the evil ones are ever ready to pull us down.
Fear the Lord and fulfill His commandments,
and you shall be called His child.

Tuesday, February 14, 2012

ईश्वर ही प्रेम हैं

विनय बिहारी सिंह




ईश्वर ही प्रेम हैं। उन्हीं की याद में आज का भी दिन क्यों न मनाएं? प्रेम की उत्पत्ति तो उन्होंने ही की है। चाहे वह प्रेम माता- पिता के प्रति हो, मित्र के प्रति हो, या पति या पत्नी के प्रति। प्रेम के स्रोत भगवान ही हैं। जो उनको लेकर मतवाले हैं, उनके जैसा सुखी और कोई हो ही नहीं सकता। प्रेम गली अति सांकरी, जा मे दो न समाय।। प्रेम तो सिर्फ एक ही से हो सकता है। उसमें दो का कोई स्थान ही नहीं है। यदि दो आ गए तो फिर वह शुद्ध प्यार नहीं है। इसलिए भक्त कहता है- मैं तो ईश्वर के प्रेम में गिरफ्तार हो गया हूं। उनके सिवा और कोई मुझे दिखता ही नहीं, सूझता ही नहीं। त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बंधुश्चसखा त्वमेव........। है भगवान तुम्हीं सब कुछ हो। माता, पिता, मित्र, भाई, विद्या, धन..... सर्वस्व तुम्ही हो। ऐसा भाव मन में आ जाए तो प्रेम और गाढ़ा होने लगता है। भगवान के प्रति प्रेम गाढ़ा होते ही आप उसके आनंद में मतवाला होने लगते हैं। आपका आनंद भीतर ही भीतर आपको सुख देता रहता है। बाहर से कोई जान ही नहीं पाता कि आपके भीतर हो क्या रहा है। आप किसकी याद में मदमस्त हैं। यह आनंद, यह मस्ती सिर्फ भगवान से प्यार करने पर ही आ सकती है। परमहंस योगानंद जी ने कहा है- ईश्वर ही प्रेम हैं। सचमुच उनके प्रेम में नहाने का सुख ही कुछ और है।

Monday, February 13, 2012

ब्रह्मांड के स्वामी

विनय बिहारी सिंह





हम लोग कई बार कुछ समस्याओं को लेकर बहुत चिंतित हो जाते हैं। परमहंस योगानंद जी ने कहा है- ईश्वर पर भरोसा कीजिए। हमारी मुश्किल तब होती है जब हम किसी मनुष्य पर तो विश्वास कर लेते हैं, लेकिन भगवान पर नहीं करते। क्योंकि भगवान आमतौर पर अदृश्य हैं। वे उन्हें ही महसूस होते हैं जो गहरी भक्ति में डूबे हैं। लेकिन सबको तो दिखते नहीं हैं। इसलिए लोग भगवान पर विश्वास नहीं करते। वे चाहते हैं कि भगवान सामने आ कर कहें कि मैं तुम्हें भरोसा देता हूं। तुम्हारी समस्या सुलझ जाएगी। ऐसा नहीं हो सकता। हम भगवान को अपनी शर्तों पर नहीं चला सकते। हमारे अधिकार में है प्रार्थना करना। उनके अधिकार में है हमारी समस्या का समाधान। वे हमारे माता- पिता हैं। वे चाहे जिस तरह हमारी समस्या सुलझाएं। उनकी मर्जी। हम उन्हें तरीका क्यों सुझाएं। हमारी दृष्टि और दिमाग तो एक सीमा के बाहर जा नहीं सकता। इसलिए हमारे दिमाग की सोच भी सीमित है। क्यों हम भगवान के सामने समर्पण करें और उन्हें गाइड करने को कहें। उनसे प्रार्थना करें- हे प्रभु, आप अंतर्यामी हैं, सर्वज्ञाता और सर्वशक्तिमान हैं। मुझे गाइड कीजिए। मैं मेहनत करने को तैयार हूं लेकिन मुझे गाइड कीजिए। कैसे मैं अपनी समस्या सुलझाऊं। बताइए। आपको किसी न किसी तरह समाधान मिल जाएगा। लेकिन अगर हम भगवान के सामने स्वयं को ज्यादा बुद्धिमान मानने लगेंगे तो हमारी समस्या नहीं सुलझेगी। भगवान के प्रति पूर्ण श्रद्धा से, पूर्ण समर्पण से और पूर्ण प्रेम से हमारा काम बन जाएगा।

Saturday, February 11, 2012

आखिर इतना प्रपंच किसलिए?

विनय बिहारी सिंह



अनेक लोग दिन- रात दुनियादारी में बुरी तरह व्यस्त रहते हैं। मेरे आवास परिसर में एक व्यक्ति की अचानक मृत्यु हो गई। उम्र पैंसठ वर्ष के करीब रही होगी। वह व्यक्ति अपनी दिनचर्या में खूब व्यस्त रहता था। उसकी पत्नी अच्छी तरह सज संवर कर रहती थीं। एक बेटी थी जिसकी शादी हो गई थी। उस व्यक्ति को कोई चिंता नहीं थी। वह अपनी नौकरी से रिटायर हो चुका था। पेंशन मिल रही थी। इस व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी ने सजना- संवरना छोड़ दिया है। एक वैरागी महिला की तरह रहती हैं। पहने ओढ़ने में भी अब वे उतनी रुचि नहीं ले रहीं। अब उन्हें लग रहा है कि आखिर वे किसलिए ड्रेस पर और खाने- पीने पर ध्यान देती रहीं? मनुष्य को कई बार ऐसी ही घटनाओं से आभास होता है कि जीवन में कई बातों में हम जरूरत से ज्यादा रुचि लेते हैं। हालांकि उसका कोई अर्थ नहीं है। जैसे एक व्यक्ति मांस- मछली खूब खाते थे। अचानक उनके रक्त में यूरिया की मात्रा बढ़ गई और बैड कोलेस्टेराल भी काफी बढ़ गया। डाक्टरों ने उन्हें मांस- मछली खाने और सिगरेट पीने से मना कर दिया। उन्होंने मृत्यु के भय से यह सब छोड़ दिया। अब वे कहते हैं- मैं बेकार ही मांस मछली खाता था। सिगरेट पीता था। यदि शुरू से ही शाकाहारी रहता और कोई नशा नहीं करता तो कितना आनंद रहता। उनका मानना है कि आदतें पकड़ते वक्त आदमी असावधान होता है। लेकिन वही आदत जब हमारे ऊपर हावी हो जाती है तो कष्ट देने लगती है। जिस आदत को हमने पाला- पोसा, वही हमें कष्ट देती है। इसलिए हमें जीवन में अपने कर्तव्य तो निभाने चाहिए लेकिन सावधान भी रहना चाहिए।

Wednesday, February 8, 2012

आकर्षण

विनय बिहारी सिंह



परमहंस योगानंद जी ने कहा है कि आकर्षण का नियम ताकतवर ढंग से काम करता है। परमहंस जी की इस बात को हम अपने दैनिक जीवन में भी देख सकते हैं। यदि किसी अनजान व्यक्ति को भी ध्यान से कुछ देर देखते रहिए तो वह व्यक्ति भी आपको देखने लगता है। ठीक इसी तरह यदि आप किसी के बारे में दिन- रात सोचते रहिए तो उसका आकर्षण आपके प्रति भी होगा। यह नियम भगवान के साथ और आनंददायक रूप में काम करता है। यदि हम भगवान के बारे में गहरी श्रद्धा से सोचेंगे तो उनका प्रेम कुछ ज्यादा बढ़ जाएगा। उनके किसी भी रूप के बारे में सोचें, पढ़ें और चिंतन करें तो हम उनका विशेष ध्यान खींचते हैं। कई भक्त तो यह कहते हैं कि चाहे भगवान मुझे सोने के महल में ही क्यों न रखें और चाहे जितनी भी सुख- सुविधाएं ही क्यों न दे दें, जब तक भगवान का साथ नहीं मिलेगा, आनंद नहीं मिलेगा। सारी सुख- सुविधाएं बोझ जैसी लगेंगी। भगवान का साथ मिले तो फिर बात ही क्या है। आप को कोई दुख नहीं सताएगा, कोई कष्ट नहीं सताएगा, कोई अभाव नहीं महसूस होगा। क्योंकि तब स्वयं भगवान आपके हृदय में मजबूती के साथ बैठे होते हैं। भगवान ने गीता में कहा है- श्रद्धावान लभते ज्ञानम। जिनके भीतर गहरी श्रद्धा है, वे भगवान को अवश्य पाते हैं। यह नियम है। स्वयं भगवान ने गीता में प्रतिज्ञा की है- मैं भक्तों का योग- क्षेम स्वयं वहन करता हूं। इतने आश्वासन के बाद भी अगर हम भगवान को प्रेम न करें तो हमारा ही दोष होगा।

Monday, February 6, 2012

भय को हराना

विनय बिहारी सिंह




ऋषियों ने कहा है कि भय, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष आदि हानिकारक भावनाएं हैं। इनसे जितना दूर रहा जाए, अच्छा है। इनमें भय सबसे पहले है। मनुष्य को किसी रोग का, किसी अनहोनी का भय सताता रहता है। परमहंस योगानंद जी ने कहा है कि जिसे भगवान की सुरक्षा में विश्वास है, जिसे भगवान के प्रेम में विश्वास है, वह नहीं डरता। लेकिन यह विश्वास सौ प्रतिशत होना चाहिए। कई लोग किसी मनुष्य में, किसी डाक्टर में विश्वास कर लेते हैं, लेकिन भगवान में नहीं करते। तर्क देते हैं कि भगवान को तो देखा नहीं है। ऋषियों ने कहा है- यह सारी सृष्टि उन्होंने ही बनाई है और वही चला रहे हैं। एकदम घड़ी की तरह। भले ही वे अदृष्य हैं। और अदृश्य तो उनके लिए हैं जो साधक नहीं हैं। जो संसार से ज्यादा आसक्त हैं। जो भगवान का गहरा ध्यान करते हैं, जिन्होंने खुद को भगवान के चरणों में समर्पित कर दिया है, उनके लिए तो भगवान दृश्य हैं। दिखाई देते हैं। उनकी आवाज सुनाई पड़ती है। ऐसे लोग अपने अंतःकरण में भगवान की आवाज सुनते हैं। बिल्कुल स्पष्ट। लेकिन जो संसार की तरह- तरह की आवाजों में आसक्त हैं, उन्हें अपने अंदर की आवाज कैसे सुनाई पड़ सकती है? सूक्ष्म आवाजें तो सूक्ष्म में गहरे उतरने से ही सुनाई पड़ेगी। भगवान की आवाज तो सूक्ष्म है। मन शांत और श्रद्धा से ओतप्रोत हो तो भगवान का अनुभव होगा। ऐसा ही ऋषियों ने कहा है।

Thursday, February 2, 2012

भगवान को महसूस करना

विनय बिहारी सिंह




अनेक लोग यह प्रश्न करते हैं कि यह सही है कि भगवान इस सृष्टि के कण- कण में मौजूद हैं। लेकिन हम उन्हें महसूस क्यों नहीं करते? उत्तर है- क्योंकि हमारा मन पूरी तरह शांत नहीं है। हमारा दिमाग पूरी तरह शांत नहीं है। ज्यादातर लोग ज्योंही ध्यान करने बैठते हैं, दो मिनट तो दिमाग पूरी तरह शांत रहता है। भगवान से लगा रहता है। लेकिन फिर तुरंत ही इधर- उधर भटकने लगता है। क्यों? क्योंकि मन अस्थिर हो चुका है। अस्थिरता का अभ्यास बन चुका है। जबकि स्थिरता का अभ्यास होना चाहिए। इस तरह अभ्यास उल्टा हो गया है। उसे सीधा करना है। यानी मन को शांत रखना है। दिमाग को शांत रखना है। कैसे? अभ्यास से। एकमात्र उपाय है- अभ्यास। प्रेक्टिस। प्रेक्टिस से ही बड़े से बड़े काम हम कर सकते है। जैसे, शरीर सौष्ठव का अभ्यास करने वाला व्यक्ति तरह- तरह के व्यायाम करता है। खास तरह के पौष्टिक भोजन करता है। ठीक उसी तरह, मन को भी शक्तिशाली और दृढ़ रखने के लिए अभ्यास की जरूरत है। प्रेक्टिस की जरूरत है। यह आसान नहीं है। मन को बांधना आसान नहीं है। लेकिन अभ्यास से यह संभव हो जाता है। यह अनेक साधकों का अनुभव है। जिनका मन बहुत चंचल रहता था, उन्होंने आत्म नियंत्रण से, अभ्यास से अपने मन पर काबू कर लिया है। अब उनका मन व्यर्थ में नहीं भटकता। मन ज्योंही भटकता है, वे उससे कहते हैं-
ठहरो। भगवान के पास ही रहो। बाहर जाने पर दुख ही दुख है। भगवान के आनंद में डूबो।

Wednesday, February 1, 2012

सोचे हुए को सुन पाना संभव

(courtesy- BBC Hindi)
मस्तिष्क की कार्यप्रणाली का बड़ा भाग अभी भी वैज्ञानिकों के लिए पहेली बना हुआ है
अमरीका में वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्होंने मस्तिष्क से निकलने वाली तरंगों को पढ़ने की ओर पहला क़दम बढ़ा लिया है.

इससे ये संभव हो सकेगा कि किसी व्यक्ति के कुछ बोलने से पहले ही ये जाना जा सकेगा कि वह क्या बोलने जा रहा है.

कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने मस्तिष्क में कुछ उपकरण लगाकर और एक कंप्यूटर प्रोग्राम की सहायता से ऐसा संभव कर दिखाया है.

शोध के नतीजों से ये उम्मीद जागी है कि आने वाले दिनों में मस्तिष्क से संबंधित बीमारियों से परेशान लोगों के लिए या बोल पाने में अक्षम लोगों की बातें समझना आसान हो जाएगा.

बीबीसी के विज्ञान संवाददाता जैसन पामर का कहना है कि ये किसी विज्ञान कथा की तरह है जिसमें आप किसी के विचारों को पढ़कर उन्हें सुन भी पा रहे हैं.

यानी आप किसी व्यक्ति के मस्तिष्क से सीधे बात कर रहे हैं.

उन्होंने ये उपकरण मस्तिष्क के उस हिस्से में लगाया था जो भाषा को लेकर जटिल विद्युतीय तरंगों के रूप में संकेत देता है. फिर इन तरंगों को कंप्यूटर की सहायता से ध्वनि तंरंगों में बदलकर उसे डिकोड करके बोले गए शब्दों और वाक्यों के रूप में सुना.

यानी शोधकर्ता वह बात सुन पा रहे थे जो व्यक्ति सोच रहा था.

शोधकर्ता मान रहे हैं कि ये उन लोगों के लिए वरदान साबित हो सकता है जो किसी और तरह से अपनी बात नहीं रख पाते.