Monday, February 6, 2012

भय को हराना

विनय बिहारी सिंह




ऋषियों ने कहा है कि भय, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष आदि हानिकारक भावनाएं हैं। इनसे जितना दूर रहा जाए, अच्छा है। इनमें भय सबसे पहले है। मनुष्य को किसी रोग का, किसी अनहोनी का भय सताता रहता है। परमहंस योगानंद जी ने कहा है कि जिसे भगवान की सुरक्षा में विश्वास है, जिसे भगवान के प्रेम में विश्वास है, वह नहीं डरता। लेकिन यह विश्वास सौ प्रतिशत होना चाहिए। कई लोग किसी मनुष्य में, किसी डाक्टर में विश्वास कर लेते हैं, लेकिन भगवान में नहीं करते। तर्क देते हैं कि भगवान को तो देखा नहीं है। ऋषियों ने कहा है- यह सारी सृष्टि उन्होंने ही बनाई है और वही चला रहे हैं। एकदम घड़ी की तरह। भले ही वे अदृष्य हैं। और अदृश्य तो उनके लिए हैं जो साधक नहीं हैं। जो संसार से ज्यादा आसक्त हैं। जो भगवान का गहरा ध्यान करते हैं, जिन्होंने खुद को भगवान के चरणों में समर्पित कर दिया है, उनके लिए तो भगवान दृश्य हैं। दिखाई देते हैं। उनकी आवाज सुनाई पड़ती है। ऐसे लोग अपने अंतःकरण में भगवान की आवाज सुनते हैं। बिल्कुल स्पष्ट। लेकिन जो संसार की तरह- तरह की आवाजों में आसक्त हैं, उन्हें अपने अंदर की आवाज कैसे सुनाई पड़ सकती है? सूक्ष्म आवाजें तो सूक्ष्म में गहरे उतरने से ही सुनाई पड़ेगी। भगवान की आवाज तो सूक्ष्म है। मन शांत और श्रद्धा से ओतप्रोत हो तो भगवान का अनुभव होगा। ऐसा ही ऋषियों ने कहा है।

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