Saturday, February 11, 2012

आखिर इतना प्रपंच किसलिए?

विनय बिहारी सिंह



अनेक लोग दिन- रात दुनियादारी में बुरी तरह व्यस्त रहते हैं। मेरे आवास परिसर में एक व्यक्ति की अचानक मृत्यु हो गई। उम्र पैंसठ वर्ष के करीब रही होगी। वह व्यक्ति अपनी दिनचर्या में खूब व्यस्त रहता था। उसकी पत्नी अच्छी तरह सज संवर कर रहती थीं। एक बेटी थी जिसकी शादी हो गई थी। उस व्यक्ति को कोई चिंता नहीं थी। वह अपनी नौकरी से रिटायर हो चुका था। पेंशन मिल रही थी। इस व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी ने सजना- संवरना छोड़ दिया है। एक वैरागी महिला की तरह रहती हैं। पहने ओढ़ने में भी अब वे उतनी रुचि नहीं ले रहीं। अब उन्हें लग रहा है कि आखिर वे किसलिए ड्रेस पर और खाने- पीने पर ध्यान देती रहीं? मनुष्य को कई बार ऐसी ही घटनाओं से आभास होता है कि जीवन में कई बातों में हम जरूरत से ज्यादा रुचि लेते हैं। हालांकि उसका कोई अर्थ नहीं है। जैसे एक व्यक्ति मांस- मछली खूब खाते थे। अचानक उनके रक्त में यूरिया की मात्रा बढ़ गई और बैड कोलेस्टेराल भी काफी बढ़ गया। डाक्टरों ने उन्हें मांस- मछली खाने और सिगरेट पीने से मना कर दिया। उन्होंने मृत्यु के भय से यह सब छोड़ दिया। अब वे कहते हैं- मैं बेकार ही मांस मछली खाता था। सिगरेट पीता था। यदि शुरू से ही शाकाहारी रहता और कोई नशा नहीं करता तो कितना आनंद रहता। उनका मानना है कि आदतें पकड़ते वक्त आदमी असावधान होता है। लेकिन वही आदत जब हमारे ऊपर हावी हो जाती है तो कष्ट देने लगती है। जिस आदत को हमने पाला- पोसा, वही हमें कष्ट देती है। इसलिए हमें जीवन में अपने कर्तव्य तो निभाने चाहिए लेकिन सावधान भी रहना चाहिए।

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