Thursday, February 2, 2012

भगवान को महसूस करना

विनय बिहारी सिंह




अनेक लोग यह प्रश्न करते हैं कि यह सही है कि भगवान इस सृष्टि के कण- कण में मौजूद हैं। लेकिन हम उन्हें महसूस क्यों नहीं करते? उत्तर है- क्योंकि हमारा मन पूरी तरह शांत नहीं है। हमारा दिमाग पूरी तरह शांत नहीं है। ज्यादातर लोग ज्योंही ध्यान करने बैठते हैं, दो मिनट तो दिमाग पूरी तरह शांत रहता है। भगवान से लगा रहता है। लेकिन फिर तुरंत ही इधर- उधर भटकने लगता है। क्यों? क्योंकि मन अस्थिर हो चुका है। अस्थिरता का अभ्यास बन चुका है। जबकि स्थिरता का अभ्यास होना चाहिए। इस तरह अभ्यास उल्टा हो गया है। उसे सीधा करना है। यानी मन को शांत रखना है। दिमाग को शांत रखना है। कैसे? अभ्यास से। एकमात्र उपाय है- अभ्यास। प्रेक्टिस। प्रेक्टिस से ही बड़े से बड़े काम हम कर सकते है। जैसे, शरीर सौष्ठव का अभ्यास करने वाला व्यक्ति तरह- तरह के व्यायाम करता है। खास तरह के पौष्टिक भोजन करता है। ठीक उसी तरह, मन को भी शक्तिशाली और दृढ़ रखने के लिए अभ्यास की जरूरत है। प्रेक्टिस की जरूरत है। यह आसान नहीं है। मन को बांधना आसान नहीं है। लेकिन अभ्यास से यह संभव हो जाता है। यह अनेक साधकों का अनुभव है। जिनका मन बहुत चंचल रहता था, उन्होंने आत्म नियंत्रण से, अभ्यास से अपने मन पर काबू कर लिया है। अब उनका मन व्यर्थ में नहीं भटकता। मन ज्योंही भटकता है, वे उससे कहते हैं-
ठहरो। भगवान के पास ही रहो। बाहर जाने पर दुख ही दुख है। भगवान के आनंद में डूबो।

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