विनय बिहारी सिंह
कल एक साधु ने कहा- जहां शरीर सुख प्रधान हो जाएगा, वहां भगवान के लिए जगह नहीं है। क्योंकि उस व्यक्ति के लिए शरीर ही सब कुछ हो जाएगा। शरीर को खाने, पीने और आराम देने में ही सारी जिंदगी बीत जाएगी। और एक दिन मृत्यु आ जाएगी। मन हमेशा शरीर सुख के बारे में ही सोचता रहेगा। ऋषियों ने कहा है- यह संसार द्वैत से बना है- सुख- दुख, रात- दिन और लाभ- हानि आदि। जहां द्वैत होगा, वहां अखंड आनंद हो ही नहीं सकता। मनुष्य ज्यादातर सब कांसश या कांसश स्थिति में रहता है। सुपर कांसश में बहुत कम लोग जाते हैं। जो सुपर कांसश में रहता है, वही सबसे सुखी है। ऋषियों ने कहा है- सुपर कांशस में रहना यानी गहरे ध्यान में डूबना। साथ ही यह मानना कि भगवान ही सब कुछ है। मनुष्य या सारे जीव उसकी कठपुतली हैं। वह जैसे नचाता है, हम नाचते हैं। हमारा इस संसार में किसी चीज पर वश नहीं है। यह मानते हुए ईश्वर की शरण में जाना, सबसे सुरक्षित और आनंददायी काम है। अगर हम खुद को कर्ता मान लेंगे तो फिर प्रपंच हमारा पीछा नहीं छोड़ेंगे। स्वयं को कर्तापन से दूर रख कर, यह सोच कि यह भगवान का काम है, आनंददायी है।
1 comment:
सही कहा आप मगर ?
आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
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