Tuesday, July 12, 2011

तीसरा नेत्र

विनय बिहारी सिंह


आज एक बहुत ही रोचक घटना पढ़ी। बात प्राचीन काल की है। तमिलनाडु के एक राजा के प्रधानमंत्री साधु स्वभाव के थे। वे राज्य के किसी काम से बाहर निकले। एक सुनसान स्थान पर उनकी भेंट साधु के रूप में प्रकट हुए भगवान शिव से हुई। भगवान शिव ने उन्हें अपनी कुटी में रखा। प्रधानमंत्री को कुटी में रहना बहुत अच्छा लगा। एक दिन भगवान शिव ने उन्हें दीक्षा दे दी। दीक्षा के समय उनका तीसरा नेत्र ( ललाट के निचले हिस्से पर दोनों भौंहों के बीच वाला स्थान) खुल गया। दीक्षा के बाद प्रधानमंत्री भूल गए कि वे एक बहुत बड़े अधिकारी हैं। यही नहीं वे अपना घर परिवार और अपनी देह तक भूल गए। वे ईश्वरीय आनंद से ओतप्रोत थे। दीक्षा देने के बाद भगवान शिव गायब हो गए। तब प्रधानमंत्री व्याकुल हो कर उन्हें ढूंढ़ने लगे। तभी उन्हें हवा में सुनाई पड़ा- मुझे मत खोजो। जो दीक्षा तुम्हें दी है, उसका भक्ति के साथ पालन करो। अचानक प्रधानमंत्री को आभास हुआ- वही तो भगवान शिव थे। लेकिन मैं उन्हें पहचान क्यों नहीं पाया? फिर उन्हें समझ में आया कि भगवान कई बार जब साधु या अन्य किसी रूप में प्रकट होते हैं तो नहीं चाहते कि कोई उन्हें पहचाने। इसीलिए वे माया का एक परदा रच देते हैं। फिर तो वे भगवान शिव उनके अस्तित्व में ही समा गए। रात- दिन, हर क्षण वे बस भगवान शिव का जप, ध्यान और गुणगान करते रहते थे। अंत में वे भगवान शिव में ही विलीन हो गए।
मुझे यह कथा इतनी अच्छी लगी कि आप सबको यह बताना जरूरी लगा।

4 comments:

Anita said...

भक्तिभावना से ओतप्रोत रचना !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत अच्छी और भक्ति ओर अग्रसर करती पोस्ट

अनामिका की सदायें ...... said...

rochak katha.

Anupama Tripathi said...

sunder bhav