Monday, July 11, 2011

अदृश्य होने का रहस्य

विनय बिहारी सिंह




कबीरदास ने जब देह त्याग किया तो उनके अंतिम संस्कार को लेकर बातचीत होने लगी। हिंदू शिष्यों ने कहा कि कबीरदास का दाह संस्कार होना चाहिए। मुसलमान शिष्यों ने कहा- उन्हें दफनाया जाए। तभी किसी शिष्य ने गुरु का चेहरा देखने के लिए कफन उठाया तो देखा कि कबीरदास की देह के बदले वहां फूल हैं। यह कैसे हुआ? आटोबायोग्राफी आफ अ योगी में परमहंस योगानंद जी ने अदृश्य होने के बारे में लिखा है। उच्चकोटि के संतों में यह क्षमता होती है कि वे जिस क्षण चाहें गायब हो सकते हैं और जिस क्षण चाहें प्रकट हो सकते हैं। कहीं भी, कभी भी। कबीरदास ने अपनी देह छोड़ दी थी, लेकिन अपने सूक्ष्म शरीर से वे अपना पार्थिव शरीर नियंत्रित कर रहे थे। उनका शरीर इतना पवित्र होता है कि वे जब चाहे खुद को प्रकाश में परिवर्तित कर सकते हैं। प्रकाश में परिवर्तन के कारण उनका शरीर हल्का हो जाता है। अब जिस समय भी चाहें, कहीं भी जा सकते हैं। अन्य कुछ संत भी अदृश्य औऱ प्रकट हुए हैं। लेकिन ये संत चमत्कार दिखाने के लिए ऐसा नहीं करते। बल्कि अदृश्य होने की आवश्यकता होती है या प्रकट होने की आवश्यकता होती है, तब ऐसा करते हैं। वे इसकी चर्चा भी पसंद नहीं करते। यह एक सूक्ष्म क्षमता है, जो उच्चकोटि के साधु- संतों में होती है। उनकी गहरी साधना से उनका शरीर प्रकाशमय रहता है।

1 comment:

कविता रावत said...

काश ! आज भी हमारे देश में कोई ऐसा संत होता!
संत कबीरदास जी के बारे में बहुत बढ़िया जानकारी के लिए आभार!