Thursday, July 7, 2011

सिद्ध संत थे कबीर के पुत्र कमाल

विनय बिहारी सिंह



कबीर के पुत्र कमाल उच्च कोटि के सिद्ध संत थे। उनके बचपन की एक घटना
से यह बात सिद्ध हो जाती है। एक लड़का कमाल का घनिष्ठ मित्र था। दोनों साथ ही खेलते थे, पढ़ते- लिखते थे और आध्यात्मिक अध्ययन, साधना आदि करते थे। उन्होंने एक खेल शुरू किया, लूडो की तरह। शर्त थी कि जो जीतेगा, वह हारने वाले के घर जाएगा और उसे खेलने के लिए आमंत्रित करेगा। एक दिन कमाल जीत गए। अगले दिन वे अपने मित्र के घर उसे खेल के लिए आमंत्रित करने गए। वहां का दृश्य दुखद था। कमाल के मित्र की मृत्यु हो चुकी थी। उसके अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी। कमाल ने पूछा- क्या हुआ है? घर के लोगों ने बताया- तुम्हारे मित्र की मृत्यु हो चुकी है। कमाल ने कहा- नहीं। यह हो नहीं सकता। उसने मेरे साथ खेलने का वादा किया है। घर के लोगों ने कहा- तुम खुद देखो। उसका शरीर बेहद ठंडा और कड़ा हो गया है। कमाल ने कहा- यह कौन सी बड़ी बात है। मैं भी अपना शरीर बेहद ठंडा और कड़ा कर सकता हूं। मेरे मित्र ने नाटक किया है। वह मरा नहीं है। यह कह कर कमाल वहीं लेट गया। थोड़ी ही देर में उसका शरीर ठंडा और कड़ा हो गया। लोगों को लगा कि कमाल की भी मृत्यु हो गई। उसके घर खबर दे दी गई। लोग रोने लगे औऱ कहने लगे कि शायद मित्र के मरने के शोक में कमाल भी चल बसा। लेकिन तभी कमाल खड़ा हो गया और हंस कर बोला- देखा। मैं जीवित हूं। इसी तरह मेरा मित्र भी जीवित है। कमाल अपने मित्र के मृत शरीर के पास गया और उसकी छाती पर हाथ रखा। मित्र जीवित हो उठा। तब तक कमाल की मां भी वहां आ चुकी थीं। कबीर ने जब इस घटना के बारे में सुना तो उन्होंने कहा- सब ऊपर वाले की लीला है। उस पर गहरा विश्वास करो तो सब कुछ संभव है।

1 comment:

कविता रावत said...

Sant Kabir ke putra kamaal ke madhyam se bahut achhi gyanvardhak prastuti ke liye aabhar!