Tuesday, July 5, 2011

सूरदास के पद

विनय बिहारी सिंह

सूरदास अपने समय के चोटी के भक्त कवि थे। कहते हैं कि एक बार वे कुएं में गिर गए। हालांकि एक मान्यता यह भी है कि उनकी दोनों आंखें खराब थीं, लेकिन उनका तीसरा नेत्र खुल चुका था। इसलिए उन्हें नेत्रहीन नहीं कहा जा सकता। तो वे कुएं में गिर पड़े। सूरदास भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त थे। उन्होंने कुएं में पड़े- पड़े भगवान को पुकारा- कहां हो दीनानाथ? मुझे मुक्त करो। सूरदास जैसा भक्त पुकारे और भगवान न आएं? भगवान कृष्ण आए और उन्हें क्षण भर में बाहर निकाला। लेकिन सूरदास ने भगवान का हाथ जोर से पकड़ लिया था।बाहर निकलने के बाद भी छोड़ते ही नहीं थे। भगवान ने किसी तरह उनसे अपना हाथ छुड़ा लिया। तब सूरदास ने कहा- हाथ छुड़ा कर तो जा रहे हैं, लेकिन आप मेरे हृदय से कैसे जाएंगे? भगवान हंस पड़े।
आइए आज उनकी एक रचना पढ़ें-

ऊधो, मन माने की बात।
दाख छुहारो छांड़ि अमृतफल, बिसकीरा बिस खात॥
जो चकोर कों देइ कपूर कोउ, तजि अंगार अघात।
मधुप करत घर कोरि काठ में, बंधत कमल के पात॥
ज्यों पतंग हित जानि आपुनो दीपक सो लपटात।
सूरदास, जाकौ जासों हित, सोई ताहि सुहात॥

( संक्षिप्त सार- मन ही बंधन औऱ मोक्ष का कारण है। अमृतफल छोड़ कर विष के लिए लालायित रहना, शांति छोड़ कर प्रपंच में रमे रहना, पवित्र सौंदर्य छोड़ कर कृत्रिम सौंदर्य में लिप्त रहना और क्या है?? जिसकी जिस तरह की प्रवृत्ति होती है, उसी में वह लिप्त हो जाता है।)

1 comment:

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर्।