विनय बिहारी सिंह
सोलहवीं शताब्दी के संत दादू दयाल, संत कबीर के शिष्यों में से एक थे। कहते हैं कि जब सिद्ध संत के रूप में उनकी ख्याति फैली तो बादशाह अकबर ने उनसे मुलाकात की। उनके दरबार में किसी ने पूछा- अल्लाह की जाति क्या है? दादू दयाल ने कहा-
इशक अलाह कि जाती है इशक अलाह का अंग।
इशक अलाह मौजूद है, इशक अलाह का रंग ।।
दादू दयाल के गुरु कबीरदास ने भी कहा है-
प्रेम न खेतो नीपजे, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा, परजा जो परै, सीस दिए लै जाय।।
दादू दयाल ने यह बात कई जगहों पर कही है। उनका कहना था कि जिस क्षण ईश्वर आसक्ति हो जाए। उनसे गहरा प्रेम हो जाए, बस काम बन जाएगा। उन्होंने कहा- ईश्वर को और किसी तरीके से प्राप्त नहीं किया जा सकता। जो ईश्वर से प्रेम करता है, वही सबसे चतुर व्यक्ति है। क्योंकि उसका काम तो बन गया। वह सभी पाशों से मुक्त हो जाएगा। कैसे? ईश्वर की कृपा प्राप्त हो जाएगी। लेकिन तब तक ईश्वर की कृपा नहीं होगी, जब तक कि आप भीतर से उसे नहीं चाहेंगे। इस अर्थ में दादू दयाल ने अपने गुरु के प्रेम तत्व को और गहरा किया है। मनुष्य का मनुष्य से प्रेम गुप्त शर्तों पर टिका हुआ है। लेकिन ईश्वर से प्रेम बिना शर्त होना चाहिए। तभी उनका प्रेम मिलेगा। तो ईश्वर से प्रेम किस तरह करें। भक्त कहता है- आप मेरे माता और पिता हैं। मैं और कहां जाऊं? आपकी शऱण में रहूंगा। आपने मुझे जीवन दिया है तो आप ही इसे पूरा करवाएंगे। मैं तो अवश हूं। बस, अब भगवान जाएंगे कहां? वे भक्त के प्रेम पाश में बंध जाते हैं। भक्त उन्हें जिस रूप में बुलाता है, उन्हें उसी रूप में आना पड़ता है। अगर वह कृष्ण के रूप में चाहता है, तो वे मोर मुकुट धारण किए, बांसुरी हाथ में लिए अपने मनमोहक रूप में आते हैं। कभी शंख, चक्र, गदा और पद्म लिए चतुर्भुज रूप में आते हैं। अगर भक्त मां काली या दुर्गा के रूप में उनकी अराधना करता है तो वे उसी रूप में आते हैं। क्योंकि भक्त तो पूरी तरह समर्पित है। सरेंडर कर चुका है। अपनी देह, मन, बुद्धि और आत्मा का। वह कहां जाएगा। भगवान के अलावा उसका है कौन? यह बात भगवान अच्छी तरह जानते हैं। सारी सृष्टि को बनाने और चलाने वाले भगवान क्या भक्त के हृदय की हूक नहीं जानते? इसीलिए तो वे उसके आसपास रहा करते हैं।
3 comments:
सर्वस्व समर्पण का भाव ही उत्तम भक्ति का लक्षण है।
मोरे तुम गुरु पितु माता, जाऊँ कहाँ तजि पद जलजाता ।
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